Sunday, 31 May 2015

नस्लभेदी हमले कबतक होते रहेंगे ?

                                                       
एक  गोरे युवक का प्रतिरोध करता हुआ सिख  युवक का वीडियो यह यह आज के युग में
नस्लभेदी और भारतीयों के साथ दूसरे देशो में कैसा व्यव्हार होता है यह दर्शाता है
यह कोई अकेली घटना नहीं  है,अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक ऐसी घटनाएं अतीत में
हो चुकी है अगर भारत जातिवाद,प्रांतवाद से ग्रस्त है तो पश्चिम के देश नस्लवाद से ।

एक की चमड़ी गोरी,दूसरे की काली
खून का रंग तो लाल  ही है,न सफ़ेद न काला
सबका मालिक एक तो क्यों इंसान आपस में फर्क करता है । 

Wednesday, 27 May 2015

संबित पात्रा एक वाकपटु राजनीतिज्ञ||

                                                              
संबित पात्रा टीवी के हर दूसरे डिबेट में मौजूद रहते है 
बातों को तोडना-मरोड़ना तो कोई इनसे सीखे 
अपनी बात  के लिए किसी भी हद तक जाना 
अंग्रेजी-हिंदी दोनों भाषाओ में बोलने में महारत हासिल
अर्रोगन्स का इल्जाम जिन भाजपा नेताओ पे लगाया जाता है उनमे इनकी गिनती पहले होगी 
जनाब सत्य को स्वीकार करने और दुसरो को सुनने का भी धैर्य रखे। 


 

भावनाओ का कोई हिसाब नहीं |

आँख से गिरा आसूँ 
फूलों पर पड़ी ओस की बूँदें 
पेड़ पर से टूटे हुए पत्ते 
मुह से निकले हुए शब्द 
इनको अदृश्य होते देर नहीं लगती 
लेकिन मानसपटल पर वह छाप छोड़ जाते है 
जिनको मिटने के लिए सदियों बीत जाते है। 



Monday, 25 May 2015

सरकार को हिसाब देने की जल्दी क्यों??

                                                         
कोई १००  का हिसाब दे रहा है,कोई एक साल का हिसाब दे रहा है 
इस हिसाब से जनता का हिसाब गड़बड़ा रहा है 
इनपर जो खर्चे आएंगे वह कोई नेता या मंत्री अपनी जेब से तो देंगे नहीं 
हिसाब देने की होड़ मची हुई है 
लगता है जनता अंधी,बेहरी,या नासमझ है की उसको कुछ दिखाई या सुनाई नहीं देता 
हिसाब देने को पुरे ५ साल है,बोल-बोल कर बताने की अपेक्षा कार्य करे 
परिणाम जनता के सामने आजायेगा। 


पीकू पुराने आयाम को तोड़ती फिल्म।।

                                                  
पीकू पिता-पुत्री के सम्बन्धो को पेश करती फिल्म 
माँ-बाप की मजबूरियां की बेटी को दुसरो के घर भेजना 
 मज़बूरी और धारणाओं को तोड़ती 
हर व्यक्ति को व्यक्तित्व का विकास करने का हक़ 
औरत क्यों इतनी मजबूर की उसकी मंजिल शादी पर जाकर खत्म हो 
उसके माँ-बाप मजबूर क्यों?
समाज को अपना नजरिया बदलना पड़ेगा हमारे समझ में जहा बीटा 
खानदान का चिराग और बेटी को पराया धन माना जाता है वहा पीकू सहज रूप से 
इन साड़ी धारणाओं को तोड़कर सन्देश देती है। 


 

Friday, 22 May 2015

AAP सोच-विचार कर बोले ||

                                                    
अहंकार था जो महान-बलशाली,महा-विद्वान,वेदो का ज्ञाता,शिव-भक्त रावण को भी ले डूबा 
हमारे नेता और पार्टिया वोट मिल जाने पर अहंकार और मध में आकर न जाने क्या क्या बोल जाते है 
राजनीती,राजनीती की स्तर पर होनी चाहिए
ओछी राजनीती करके यह हिटलरशाही से किसी का भला नहीं होगा 
केजरीवाल और उनके नेता,मीडिया,प्रधानमंत्री,राज्यपाल और प्रशासनिक कार्य में लगे हुए 
व्यक्तियों पर आक्षेप और आरोप-प्रत्यारोप करने की अपेक्षा सार्थक कार्य और प्रयास करे। 
किसी की जय तो किसी की पराजय यह तो प्रकृति का नियम है 
पर इसका यह मतलब नहीं की AAP कुछ भी करेंगे और कुछ भी कहेंगे 
इतिहास गवाह है की दिल्ली किसी एक की कभी नहीं रही। 


सबका साथ सबका विकास॥


एक छात्र को केवल इसीलिए नौकरी से इंकार किया गया क्यूंकि वो मुस्लिम है
बादमे कंपनी ने संज्ञान लेते हुए करवाई की,लेकिन ये केवल एक घटना नहीं है
भाषा,वर्ग,प्रान्त,खानपान के आधार पर भेदभाव होता है
ये केवल एक समुदाय के साथ नहीं या माइनॉरिटी-मेजोरिटी के आधार पर नहीं
बल्कि दूसरे से स्वयं को श्रेष्ठ समझने की भावना
योग्यता या स्वाभाव नहीं,भाषा,प्रान्त,धर्म के आधार पर लोगो को मापा जाता है
मुंबई जैसे कोस्मोपॉलीटीएन शहर में भी मुस्लिम,ईसाई,जैन,पारसी,मारवाड़ी,पंजाबी,मद्रासी
इत्यादि आधार पर निवासस्थान बटे हुए है  यहाँ तक की सिक्षणक्षेत्र और हस्पताल की भी  है 
यह अनपढ़ नहीं बल्कि पढ़े-लिखे लोगो में तो और भी दिखाई देता है 
हिंदुस्तान हमारा सबका है बिना भेदभाव के एक दूसरे के प्रति आदर और  सम्मान हो 
जाती-वर्ग,प्रान्त-भाषा की सीमा तोड़े लोग तभी होगा देश का विकास।


Thursday, 21 May 2015

राहुल गांधी||

                                                         
बाबा,पप्प्पू,युवराज आदि उपनामों से राहुल गांधी को सत्तापक्ष द्वारा नवाज़ा जाना शोभा नहीं देता
विपक्ष का कार्य ही है सरकार की आलोचना कर उनको नियंत्रण में रखना
अगर राहुल मुद्दा उठा रहे है और उसमे कोई संसोधन वाली बात जनता के हित में हो तो सत्तापक्ष को
उसपर ध्यान देना चाहिए न की मजाक उड़ाना
आज सत्तापक्ष पे बैठे हुए हर नेता का बेटा गाव में नहीं रहता इसका मतलब
उसे गेहू या धान का फरक नहीं मालूम
नीयत साफ़ होनी चाहिए बनिस्पत की वह कहा पला बढ़ा है ।


Tuesday, 19 May 2015

अरुणा शानबॉग ||

                                             
                                                 
एक थी अरुणा,सुन्दर,हँसती -खिलखिलाती,ऊँचे -ऊँचे स्वप्न देखनेवाली
जीवन में ऊंचाइयों को छूने की चाह ,कर्णाटक से मुंबई के KEM हॉस्पिटल का सफर
इतना लम्बा होजायेगा यह सोचा भी न होगा,मृत्यु को आने में भी ४२ साल लग गए
एक अमानवीय दुर्घटना ने उसकी पूरी जिंदगी ही बदल दी
अरुणा की जिंदगी में अरुणोदय होने के पहले ही अँधेरा छा गया
सबने साथ छोड़ दिया लेकिन धन्यवाद के पात्र  है KEM  का स्टाफ
जिन्होंने इतने साल तक पुरे मन से देखभाल और सेवा की
जाते-जाते अरुणा एक सवाल छोड़ गयी है की किस अपराध की सजा उसे मिली
और दोषी आराम से घूम रहा है
इस पहलु पर भी सोचने की जरुरत है ।



Tuesday, 12 May 2015

कब तक भूकम्प के झटके आते रहेंगे??


प्रकृति का प्रकोप क्यों हो रहा है इसके लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है
सारे संसार में ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसी आपदाए आरही है
आग,भूकम्प,बाढ़ ,तूफ़ान ,जान-माल की हानि
इतने वैज्ञानिक साधनो -उपकरणों के बावजूद प्रकृति के आगे लाचार मनुष्य कुछ नहीं कर पा रहा
केवल भविष्यवाणी के सिवाय
ऐसे समय में ईश्वर ही बचा सकता है अत: सर्वशक्तिमान ईश्वर से यही प्रार्थना करे
की इन प्राकर्तिक आपदाओ से मनुष्य जाती को बचाये ।



विकास कही विनाश न बन जाये।

                                                       

अहा !ग्राम्य जीवन भी क्या है
कही ऐसा न हो की ये पंक्तिया केवल किताबो में ही रह जाये
गाव ख़त्म हो रहे है ,किसान खेत बेचकर शहरों की तरफ पलायन कर रहे है
स्वच्छ और प्रदुषण मुक्त वातावरण को छोड़ नाली और गटर के आस-पास बने झोपड़पट्टियों में
रहने को मजबूर है ,हरे-हरे खेत और पेड़ के अपेक्षा कंक्रीट और सीमेंट के जंगल बढ़ रहे है
विकास की बात करते करते कही हम विनाश के रास्ते पर तो नहीं बढ़ रहे है ?
अणु -परमाणु बम का अविष्कार कर जैसे हमने अपने आप को बारूद के ढेर पर बिठाया है
वैसे ही पर्यावरण ख़त्म कर हम अपने ही जीवन में विष घोल रहे है

विकास कही विनाश न बन जाये। 

उम्र से पहले ही बच्चो को बड़ा मत बनाओ ॥

                                                         


६ वर्ष की उम्र में बच्चे का पहली कक्षा में जाना सही है क्योंकि बच्चा तबतक शारीरिक और मानसिक  रूप से
परिपक्व होजाता है ,उसमे सोचने की क्षमता का विकास होने लगता है अन्यथा उम्र के पहले ही बच्चो पर
बस्तों का ऐसा बोझ डाल दिया जाता है की उसकी पीठ को सीधा करना भी मुश्किल
शिक्षा बोझ नहीं विकास का साधन है
व्यक्तित्व निखारने का माध्यम है ।


Sunday, 3 May 2015

विदेश में बोलते समय भारत के गौरव का ध्यान रखे ॥

                                                   

जब हम भारत से बहार जाते है तो हमारे साथ हमारे देश का गौरव जुड़ा हुआ होता है
दूसरे देश में जाकर अपने देश की बुराई करने से बचना चाहिए
समस्या हमारे घर की है उसको सार्वजनिक करने से हमारा ही मजाक बनेगा
फिर वह चाहे कोई भी हो , साधारण व्यक्ति से लेकर भारत के प्रधानमंत्री तक
समस्याओ का ढिंढोरा पीटने की अपेक्षा उसको कैसे दूर करना है
यह आपस में मिलकर सभी को सुलझाना चाहिए
भ्रस्टाचार हो या अस्वछ्ता उसमे दूसरा देश कुछ नहीं कर सकता ।