नफरत नहीं प्यार बॉटते चलो
जीवन में सबको अपनाते चलो
अपना क्या पराया क्या ,हर संगी के साथ चलो
जीवन तो एक रंगमंच है
हर किरदार का अपना रंग है ,सबका लुत्फ उठाते चलो
कौन बुरा और कौन अच्छा
हर खिलाडी के खेल निराले ,सबके साथ खेलते चलो
जीवन में सबको अपनाते चलो
कदम- कदम पर धोखा और फरेब है
उनसे बचकर अपना रास्ता निकालते चलो
इसी दुनियॉ में रहना है तो फिर भागना क्यों?
अपनी मंजिल तलाशते चलो
कितनी भी पथरीली- कंकरीली हो राहे
कितने भी विशाल हो पर्वत
पगडंडियों से अपनी राहे निकालते चलो
ऑधी- तूफान ,अंधेरा यह तो है प्रकृति के अंग
इनसे मुकाबला करते चलो
डरते- डरते जीने से बेहतर हर बाधा पार करते चलो
रोते- रोते मुस्करा लो
हर गम को भूलाते चलो
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Wednesday, 30 November 2016
नफरत नहीं प्यार बॉटते चलो
सौंदर्य को महकने दो.
जुल्फ घनी लहरा रही ,चेहरे पर घटा बन छा रही
मतवाली हुई जा रही
नीला आकाश ,प्रकृति का सानिध्धय
पाकर ये भी अपना आपा खो रही
घनी काली घटाएं घिर आ रही
नदी बल खाती आगे बढ रही
पूरे शबाब पर उफनती ,सारे बंधन पार करती
न जाने कौन- कौन से मोड से निकलती
इन्हें देख लटाएं भी इतरा रही
अपनी खूबसूरती पर मचल- मचल जा रही
बार- बार आती है ,चेहरे पर छाती है
नयनों को भी ढक लेती है
ओठों पर मस्त अठखेलियॉ खेलती है
अपने - आप पर ही मोहित हुई जा रही
मानो यह भी कह रही हो
हमें बांधो मत ,उडने दो
उडकर सौंदर्य को महकने दो
एक गृहणी की व्यथा
मैं एक घरेलू महिला
अपने खर्चों में कटौती कर वर्षों से पैसे जुटाएं
नहीं कभी अपने लिए मंहगा कपडा खरिदा
न ईच्छानुसार खर्च किया
पेट को काट- काट कर
बैंक में नहीं रखा डर के मारे
पता चल जाएगा तो ले लेगे घरवाले
अपने बच्चों की शादी- ब्याह ,पढाई- लिखाई पर मनमाफिक खर्च करूंगी
पर आज जो सरकार का फरमान आया है तो डर लग रहा है
इतने सालों की बचत का हिसाब कहॉ से लाऊ
सरकार से पहले ससुराल में हिसाब देना पडेगा
पति और परिवार को
कही मुझे गलत न ठहराया जाय
घरवालों की नजर में कहीं गलत न सिद्ध कर दी जाऊ
यह जमापूंजी कालाधन तो नहीं है
मेरी वर्षों की तपस्या है
मैं नहीं चाहती कि कोई मुझ पर उंगली उठाएं
साफ- सुथरी छवि कही दागदार न हो जाय
अब क्या करूं ??
न निगलते बनता है न उगलते
घर में रहे तो बेकार ,बैंक में रहे तो दूसरों का अधिकार
Sunday, 20 November 2016
पैसा ही तो चलता है
पैसा बिना कुछ नहीं
सारे चलन- व्यवहार ठप्प
पैसा ही तो चलता है और चलाता है
अपने चारों ओर गोल- गोल घुमाता है
सम्मान भी दिलाता है
और न हो तो नीचा भी देखना पडता है
पेट भी इसी पर निर्भर रहता है
शिक्षा ,रहन- सहन ,घर
सब कुछ इसी पर निर्भर
यह पैसा ही व्यक्ति को
अर्श से फर्श और फर्श से अर्श तक पहुँचा देता है
इसके कारण ही समाज व्यवस्था चलती है
यह चलने की चीज है
जितना चलेगा ,उतना विकास
पर लोग छुपाकर रखते हैं
पहले जमाने में सिक्कों के रूप में
तो आज रूपए के रूप में
मंदिरों में और अलमारी में बंद कर रखा है
जिसका स्वभाव ही चलना हो
उसे बंद कर क्या लाभ
वैसे भी धन की देवी लक्षमी चंचल है
एक जगह टिकना उनका स्वभाव नहीं
पैसे को चलाइए ,दबाइए मत
मौत तो मौत ही है
रेल हादसे में हो या बैंक की कतार में
मौत तो मौत ही है
जान तो कीमती है
और उसका कोई सानी नहीं
मुआवजा दो या फिर नौकरी
गया हुआ तो वापस नहीं लौटने वाला
न जाने कितनों को पीछे बिलखते छोड गया
कभी न आने के लिए
बडा कार्य करना है तो ऐसा कुछ घटनाएँ होगी
यात्रा करनी है तो दुर्घटनाएँ भी होगी
क्यों पर इसका जिम्मेदार तो कोई होगा
ईश्वर तो नहीं है
क्योंकि यह मानव रचित संसार की देन है
जब हादसा हो जाता है
तब चेता जाता है और कभी- कभी तो वह भी नहीं
बैंकों की कतार पर मौते अब भी हो रही है
हर दिन किसी न किसी के मरने की खबर
रेल दुर्घटना पहले भी और अब भी
एक- दूसरे को दोष देने का सिलसिला जारी है
और रहने वाला है
पर जिसकी जान गई
उसका क्या??
उसके परिजनों का क्या??
यह सवाल तो जरूर है
कब उसकी समीक्षा होगी
राह निकलेगी
सरकार बदलती है
पर
सवाल तो वही है
मयखाने भी हुए उदास
कुछ भी हो जाय पर मयखाने की रौनक फीकी नहीं
दिन दूना रात चौगुना के हिसाब से बढोतरी
पीनेवाले का दिल भी बडा
एक - दो को तो साथ ले ही लेगा
अकेले पीने का मजा जो नहीं है
चार मिलकर वो शमा बॉध देते हैं
कि फिर याद ही नहीं
कौन पी रहा, कौन पिला रहा
मन से बिल्कुल अमीर
जेब में जो पैसे खर्च करो
कल की मत सोचो
लडखडाते कदमों से एक- दूसरे का सहारा बने जब मयखाने से बाहर निकलते हैं
लगता है स्वर्ग के द्वार से निकल रहे है
धर्म ,जाति और अमीरी- गरीबी से परे
सब एक हो जाते हैं
समाजवाद का दर्शन यही
न रोक- टोक न कोई बनावटीपन
नशे में एकदम मन की बात बोलना
पर आज उदास है
नोटबंदी की मार उस पर भी पडी है
जो पहले साथ ढूढते थे
वह ऑख चुराकर छिप रहे हैं
अपने ही पीने के लाले पडे हैं
दूसरों को कहॉ से पीलाऊंगा
जो कुछ है उसी में काम चलाना है
पीना तो है पर अकेले
और जहॉ चार यार न हो
वहॉ क्या मजा??
Saturday, 19 November 2016
यही जीवन है
देखा तो तुमको देखती रह गई
यह वही है जिसको देख लोग चकित रह जाते थे
सुंदर देहयष्टि ,खिला- खिला चेहरा
घने लंबे लहराते बाल
चेहरे पर घुंघराली लटे
वह गोरा ,दुधियॉ रंग
मोती जैसी दंतपंक्ति
लंबी ग्रीवा ,तीखे नैन- नक्श
युवा तो फिदा ही हो जाते थे
हर कोई दोस्ती करने को आतुर
कहा जाता था ईश्वर ने इसे फुरसत के क्षणों में बनाया होगा
पर आज वह रूप बदल गया
लग ही नहीं रहा था कि यह वही है
पर चेहरे पर गजब की संतुष्टी थी
लगता था सारे जहॉ की खुशियॉ उसकी मुठ्ठी में है
एक बच्चा गोद में, दूसरे का हाथ पकडे
कपडे और मेकअप ,अस्तव्यस्त
यह वही है जिसके कपडो पर सलवट नहीं पड सकती थी
हमेशा करीने से और सजी- धजी
यह क्या रूप बना लिया है??
यही तो है जीवन का आंनद और सच्चा सुख
उत्तर मिला
पंत जी की उर्वशी याद आ गई
" गलती है हिमशिला ,सत्य है गठन देह की खोकर
पर हो जाती वह असीम कितनी
पयस्वनी होकर"
वोट देने के लिए कतार में और अब रूपये के लिए
सब परेशान ,सब बेहाल
रूपए ने कर रखा है हाल खराब
है तो मुश्किल नहीं तो मुश्किल
कितना निकाले, कितना खर्च करे
पैसा होने पर भी खर्च करने से डर लगता है
क्योंकि लंबी कतार में कौन खडा रहेगा??
एक दिन कतार में ,चार दिन बीमार
आम आदमी हो गया है लाचार
कडक ,ताजा नोट के लिए लालायित
प्रधानमंत्री का निर्णय कठोर और कडक
पर सुबह की कडक चाय भी दुर्लभ
चाय की तो सबको तलब
बडा- पाव ,ढाबे पर खाना
टेक्सी चालक ,दिहाडी मजदुर जैसे
कतार में खडे रहेगे या काम करेंगे
परिवार कैसे चलेगा
यही मजदूर वर्ग पंक्तिबद्ध होकर वोट देता है
वह आज कतार की मार सह रहा है
अमीर तो घर में बैठा है
न वह रूपए की कतार में खडा है
न वोट देने की कतार में खडा रहता है
पर मार उस पर नहीं
जन सामान्य पर पड रही है
जिस लोगों की वजह से सत्ता मिली है
वही आज कतार में खडे अपने ही रूपए के परेशान है
क्या उनको मिला
कतार पर कतार
किसको- किसको हिसाब दूँ- ससुराल को या सरकार को
मैंने बचपन में छिपकर पैसे बोए थे
सोचा था पैसे का प्यारा पेड लगेगा
कवि पंत की वह कल्पना ,कल्पना ही रह गई
आज वह कविता याद आ रही है
लोग न जाने कितने वर्षों से काट- कसोर कर पैसे जमा कर रखे होगे
बच्चों की शादी ,वृद्धावस्था का इंतजाम
गृहणियॉ छुपाकर ,पति से
मुसीबत के समय काम आने के लिए
चूल्हेम के नीचे से लेकर दिवार तक
दाल- शक्कर के बक्से से लेकर तकिए के कवर और गद्दे के नीचे
पर ऐसा फरमान निकाला है सरकार ने
सबकी सॉस टंगी की टंगी रह गई
कहॉ से हिसाब दे
कितने सालों का दे
बैंक तो देखा ही नहीं कभी
हमेशा घूंघट- परदे में रही
घर से बाहर निकलने और जमा करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता
पति और ससुराल का भी और सरकार का भी डर
अब तो दोनों को हिसाब देना है
सरकार को भी और ससुराल को भी
हवाई जहाज में उडा जाय
चलो उडा जाय
हवाई जहाज से सैर किया जाय
अब तक पैसे जमा किए
अब खर्च किया जाय
किराये में पुराना कहा जाने वाला नोट चल जाएगा
थोडा भार हल्का हो जाएगा
ऊपर से नजारे देखने की ईच्छा
मन की मन में ही धरी रह गई
घर- गृहस्थी की जुगाड करते- करते
बचत करते- करते
मन को मारते- मारते
चलो सालों की तमन्ना पूरी कर ली जाय
पता नहीं कल और क्या कानून सरकार ले आए
अब ही अपनी ईच्छा पूरी कर ली जाय
जिंदगी के मजे ले लिया जाय
कल को छोड आज में जी लिया जाय
Friday, 18 November 2016
जब करेला हो गया मीठा
हमारी पाठशाला में बाल दिवस मनाया गया
यह तो बच्चों का दिन होता है
खूब तैयारी की गई थी
कई तरह के कार्यक्रम थे
बच्चों ने बहुत मौज - मस्ती की
खूब नाचे- गाए ,गाने पर थिरके
थीम था रेनबों का
बच्चे रंगबिरंगी पोशाक में आए थे
क्या सुंदर दिखाई दे रहे थे
लगता था सच में इंद्रधनुष जमीन पर उतर आया हो
अपने- अपने घरों से कुछ स्वीट्स और स्नेक्स भी लाए
आपस में शेयर कर और मिल- बॉटकर खाना था
पैरेन्ट्स ने भी बहुत मात्रा में दिया था
ताकि सब पेट भर कर खाए
तमाम तरह के व्यजंन जैसे ५६ भोग हो
बच्चों ने टीचर्स को भी तथा और स्टाफ को भी दिया
एक क्लास की एक बच्ची भरवॉ करेला ले आई
मेरे कहने पर कि सामने टेबल पर रख दो
अभी सब लोग आएगे तो बाद में हम खाएगे
क्योंकि हर क्लास अपना- अपना लाकर रख रहा था
पर उस बच्ची ने कहा
यह केवल आपके लिए है
क्योंकि आप मिठाई नहीं खाएगी
आपको डायबिटिज है न
मैं अवाक रह गई
फिर तो मैंने मिठाई और समोसे- कचोरी को देखा तक नहीं
करेला तो कडवा होता है पर वह करेला तो मिठाई को भी मात कर रहा था
करेला वैसे मेरी मनपसन्द सब्जी रही है तो हमेशा ही वह खाती रहूँगी
पर इस भरवॉ करेले को तो कभी न भूला पाउगी
जब- जब करेले की सब्जी खाऊंगी
इस करेले की याद मन में मिठास भर देगी
और चेहरे पर मुस्कराहट ले आएगी
बच्चों के मुस्कराते चेहरे के साथ
यह केवल आपके लिए हैं
बच्चों की छुट्टियॉ
हो गई छुट्टियॉ बच्चों की
बच्चों की क्यों ,बच्चों के माता- पिता की भी
रोज की भागमदौड
सुबह - सुबह उठना
नाश्ता - खाने का डब्बा तैयार करना
भागते- भागते लेने जाना और छोडने जाना
शाम होते ही दूसरे दिन की तैयारी
गृहकार्य करवाना ,प्रोजक्ट तैयार करवाना
कपडे इस्त्री करना ,जूते पॉलिश करना
और न जाने कितने कार्य
सारा दिन इसी में तमाम
फुर्सत से बैठना और उठना नहीं
छुट्टी है तो आराम है
थोडा अलसाकर उठना
आराम से काम करना
कोई भागमदौड नहीं
पर यह तो करना ही पडेगा
तभी तो बच्चों की जिंदगी सरपट दौडेगी
अगर माता- पिता आराम से बैठे
तो एक पूरी पीढी आराम से बैठ जाएगी
स्वार्थी दुनियॉ की रीत निराली
इस स्वार्थी दुनियॉ की रीत निराली
जिसकी लाठी उसकी भैंस
बलशाली से ही डरते हैं सब
आप कितने भी अच्छे हो
पर डर का ऐसा डर कि सब की बोलती बंद
नम्रता और शीलता रह जाती है देखती
खौफ निर्माण करने वाले को उत्तर देने मे भी डर
नम्र को प्रश्न पर प्रश्न पूछना
जब तक कि वह उल्टा न बोल दे
मजबूर कर देना
उत्तर देने पर ,हाथ उठाने पर
ईमानदार को बेईमान
नम्र को कठोर
सीधे- सादे को कपटी का जामा पहनाती है
कभी - कभी यही स्वार्थी दुनियॉ
पर जब वह बोलता है तो
अच्छे- अच्छों की बोलती बंद कर देता है
क्योंकि उसने यह स्वेच्छा से यह सब नहीं
मजबूरी में स्वीकार किया है
और जब मजबूरी बोलती है
तो किसी को नहीं छोडती है
Wednesday, 16 November 2016
कल उनकी बारी ,आज हमारी बारी
मन हुआ यादों के झरोखों में झॉक आऊ
चलू अतीत की सैर कर आऊ
वह बचपन की मस्ती
हल्ला- गुल्ला से सराबोर हो जाऊ
वह युवावस्था की दहलीज पर कदम रखना
वह सहेलियों संग घंटों बतियाना
बिना कारण के हँसना- खिलखिलाना
न कोई जिम्मेदारी न परेशानी
पर आज तो भार तले दब गई है जिंदगी
निकलना चाहूँ तो भी निकला नहीं जा सकता
मन तो भटकता है पर कर्तव्य बॉधता है
सही है आज हमारा समय नहीं
युवा पीढी का है
उनको भी तो वह हक है जो कभी हमको मिलाथा
माता- पिता की छत्रछाया में ही तो सुकुन का आभास होता है
अन्यथा जिम्मेदारी तो सभी के कंधों पर एक दिन आनी ही है
कभी हमारे मॉ- बाप पर थी
आज हम पर
आनेवाले समय में नई पीढी पर
शब्दों की महामाया
अगर शब्द न होते तो भावना न व्यक्त होती
मन में उमड- घुमडकर जो विचार आते हैं ,उनको दिशा न मिलती
यह शब्द नहीं खजाना है
जो कागज पर उकेरा जाता है
एक शब्द ही है जो न जाने कितने विचारों को गति देता लोगों तक पहुँचाता है
आंनद ,दुख,प्रेम ,क्रोघ जैसी भावना
पंक्तियों में शब्दबद्ध हो ,वही तो है कविता
जीवन तो एक अनवरत चलने वाली यात्रा
इस जीवन में तथा बाद के जीवन में भी
शब्द ही तो है जो जीवित रखते हैं हमें
शब्द का जादू जब चलता है
तो न जाने क्या- क्या घट जाता है
कविता ,लेख ,कहानी ,उपन्यास
जीवन को प्रभावित कर जाते हैं
समाज को दिशा और दशा दे जाते हैं
शब्दों के जादू को नकारा नहीं जा सकता
भाषा की अमूल्य देन है शब्द
शब्दों को जोडकर ही तो भाषा तैयार होती है
अंधेरा भी भला है
यह अंधेरा भाता है
कभी- कभी बहुत थक जाते है उजाले से
उजाला , परेशान करने लगता है
उजाला असहनशील हो जाता है
उजाला यानि काम के लिए तैयार हो जाना
भागमभागी ,जद्दोजहद शुरू
मस्तिष्क में भी हलचल ,दुनियॉ भर के विचार
अनवरत चलता रहने के बाद
विश्राम की जरूरत महसूस तो होती है
यह कार्य करता है अंधेरा
रात को बिस्तर पर जाकर जब ऑख बंद कर लिया जाता है
तब लगता है सुकुन मिल गया
ऑख बंद करने के बाद नींद भले न आए
पर ऑख खोलने का मन ही नहीं करता
प्रकाश से तकलीफ होती है
अगर अंधेरा न हो तो
पूरे समय हलचल ही होती
पशु,पक्षी से लेकर हर जीव ,मानव तक
रात की नीरवता में शॉति तो मिलती है
सूर्य के तेजोमय प्रकाश के बाद
चंद्रमा की शीतल चॉदनी
कहीं न कहीं तन- मन को विश्रांति दे जाती है
अगर अंधेरा न होता तो
शायद जीवन में माधुर्य न रहता
और ताजगी न होती
Monday, 14 November 2016
डॉक्टर पर नकेल कसा जाय
डॉक्टरों की मनमानी जगजाहिर है
अभी की यह खबर दिखाई जा रही है कि डॉक्टर मोबाईल पर गेम खेल रहे थे
मरिज की मृत्यु हो गई पर वे नहीं पसीजे
सरकारी अस्पताल के साथ- साथ प्राइवेट अस्पताल और क्लीनिक में भी उनकी मनमानी चलती है
लोग लाचार होते हैं
डॉक्टर उनके लिए भगवान होता है
ठीक भी तो है भगवान के बाद अगर दूसरा कोई बचाने वाला है तो वह भगवान है
पर इस भगवान को इतना गर्व होता है कि वह अपने आगे किसी को समझता नहीं
वे यह भूल जाते हैं कि जनता के टेक्स पर ही सरकार उनकी पढाई पर खर्च करती है
तो यह जवाबदेही उनकी भी बनती है
पर वे अपने पेशे को रूपया छापने की मशीन मान बैठे हैं
उनके क्लीनिक में कितना मरिजों से पैसा लेते हैं
उसका न कोई हिसाब न रसीद
इसके अलावा केमिस्ट
पैथालॉजी तथा और भी चिकित्सा से जुडे जैसे
एक्सरे इत्यादि से भी कमीशन
अगर पुलिस से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह दिन- रात काम पर हाजिर रहे
रिश्वत न ले
तो दूसरे विभागों पर भी नकेल कसनी जरूरी है
इसमें से एक डॉक्टरी पेशा भी है
बेटी को बेटी ही बने रहने दो
यह तो मेरी बेटी नहीं ,मेरा बेटा है
क्यों ,बेटी में क्या कमी है कि उसको बेटा कहा जाय
बेटियॉ तो वैसे ही जिम्मेदार होती है
और प्यारी होती है
अपना घर ,अपने लोग के प्रति उनका जुडाव बेहिसाब होता है
उसकी तुलना बेटे से नहीं की जा सकती
आज बेटियॉ पढ- लिखकर आगे बढ रही है
हर क्षेत्र में अपना परचम फहरा रही है
बेटों से आगे निकल रही है
मॉ- बाप की भी देखभाल कर रही है
अपनी देखभाल कर रही है
अपने पैरों पर खडी हो रही है
स्वावलंबी बन रही है
बिना डर के यात्रा कर रही है
अकेले रह रही है
उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं है
रेल ,बस ,ट्रेन और हवाई जहाज चला रही है
अंतरिक्ष पर जा रही है
कबड्डी और कुश्ती जैसे खेल भी खेल रही है
राजनीति और व्यापार भी कर रही है
गर्व से अपना ,परिवार ,समाज और देश का नाम ऊँचा कर रही है
अब केवल खाना पकाना ,सिलाई करना और शादी कर ससुराल जाना
यही नहीं रह गया है
उनको किसी सहारे की नहीं ,वह स्वयं परिवार का सहारा बन रही है
तो उनको बेटी कहने में गर्व महसूस करे
बेटी को बेटी ही रहने दे
जन- धन योजना - धन- धन योजना
जन - धन योजना कहीं धन- धन योजना न बन जाय
कहा जा रहा है कि जिसके अकाउन्ट में जीरो बैंलस थे
आज लाख- दो लाख और उससे ज्यादा रूपये जमा हो रहे हैं
कही यह काला धन को सफेद करने की कोशिश तो नहीं है??
यहॉ भ्रष्टाचार की जडे इतनी मजबूत है कि लोग नए- नए उपाय ईजाद कर रहे हैं
रातोरात ट्रेन के लाखों के टिकट बुक करना
करोडो का सोना बिकना
बिजली केे बकाया बिल और हाऊस टेक्स का तो अच्छा हुआ
बरसो से बकाया धन चुकता हो गया
पर ऐसा न हो कि देहात और गॉव तथा शहर के गरिब वर्ग को लालच देकर उनके खाते के माध्यम से अपना धन सफेद कर रहे हो
जन- धन योजना के कारण करोडो लोगों के खाते खुले हैं और यह बात मालूम है
इसका नाजायज फायदा न उठाया जाय
जन- धन योजना कहीं धन- धन योजना न बन जाय
ऐसे लोग तो धन्य हो जाएगे
इस पर भी कोई नियम निकाले
गरिब के खाते का फायदा न उठाया जाय
अगर पैसे देकर पत्थर फिकवाया जा सकता है
हो- हल्ला और दंगा फैलाया जा सकता है
तो यह तो नोट बदलने की बात है
रूपया जमा करने के बदले रूपया दिया जाएगा तो ऐसे बहुत से लोग तैयार हो जाएगे
जन- धन योजना ,धन जमा करवाने का नाजायज तरीका न बन जाय
बच्चा राष्ट्र की धरोहर -Happy children's day
बच्चा ही हमारा भविष्य है
राष्ट्र का आधार है
बच्चे से घर ,परिवार गुलजार रहता है
जीवन जीने का मकसद प्राप्त होता है
बच्चे राष्ट्र की अमूल्य धरोहर है
इसलिए इनकी देखभाल करना देश की जिम्मेदारी
इनके पालन- पोषण में कोई कमी नहीं होनी चाहिए
पढना- लिखना इनका मौलिक अधिकार है
इसके अलावा खेलना- कूदना भी
इन सब के लिए पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए
आज खेलने की जगह नहीं बची है
मैदान पर्याप्त मात्रा में नहीं है
जो है भी तो घर से दूर
बच्चा घर में ही कुंठित हो रह जाता है
उसकी बालसुलभ चंचलता प्रौढ हो जाती है
इसके अलावा पढाई का बोझ
दो साल की उम्र से ही बस्ते का बोझ
इसके अलावा बाल मजदूरी
यह सब समस्या बच्चे से जुडी है
उसका सर्वागीण विकास होना चाहिए
खेलना- कूदना ,मौज- मस्ती करना
चंचलता बच्चे का स्वभाव है
यह कायम रहना चाहिए
इसलिए पुराने समय में कहा जाता था कि पॉच साल तक बच्चे पर हाथ नहीं उठाना चाहिए
बच्चा भगवान का रूप होता है
और यह सही भी है
छल- कपट,झूठ बोलना तो वह सब बाद में सीखता है
पहले तो वह यह सब जानता ही नहीं
यह सबका कर्तव्य बनता है कि
बच्चे का भोलापन कायम रहे
उसकी मुस्कराहट बरकरार रहे
यह फूल हमेशा खिले रहे
और सबके मुखडे पर खिलखिलाहट लाते रहे
एक बडे लेखक ने कहा है
" आप जमीन पर उगने वाले हर तिनके का रक्षण करिए
कौन जाने कौन सा तिनका कब वृक्ष बन जाय"
यानि
हर बच्चे का सम्मान कीजिए कौन जाने कौन बडा होकर क्या बने
हर बच्चे में काबिलियत होती है और उसे परखना और तराशना
यह घर - पाठशाला और सरकार की जिम्मेदारी है
Sunday, 13 November 2016
मैं आपका प्यारा रूपया बोल रहा हूँ
मैं रूपया ,सब जगह मेरी ही तूती बोलती है
मैं जितना बडा उतना मेरा महत्तव बडा
मैं सबके इर्दगिर्द डोलता हूँ
मेरे बिना किसी का काम नहीं चलता
सब मेरे पीछे भागते है
पर आज ऐसा दिन आ गया है
कि मुझसे ही पीछा छुडा रहे हैं
कोई बंद तिजोरी से निकाल रहा है
कोई और किसी गुप्त स्थान से
मेरा स्थान आटे- दाल के डब्बे में भी रहा है
बक्सा और अलमारी में तो सदा से निवास
पर अब सब सोच में पड गए हैं
क्या करे ,कहॉ जमा करे ,कहॉ खर्च करे
पहले बचा रहे थे ,अब खर्च कर रहे हैं
पहले छुपा रहे थे ,अब निकाल रहे हैं
पहले चढावा चढाने में संकोच करते थे
अब पॉच की जगह पॉच सौ चढा रहे हैं
पहले बचाकर रखते थे
अब बहा रहे हैं
अगर मैं फट जाता था तो जोड- तोड कर चला लेते थे
अब फाडकर फेक रहे हैं
और यह दिन मैंने पहली बार नहीं देखा है
इससे पहले भी ऐसे दौर आ चुके हैं
एक समय था कि मुझे सिगरेट बना कर फूका गया
और आज तो बंडल के बंडल जलाए जा रहे हैं
लोग मेरे नये रूप की प्रतीक्षा में कतारों में खडे हैं
जिसको भी मिल जा रहा हूँ
वह अपने को भाग्यशाली मान रहा है
पर उनका क्या जिनकी रातों की नींद उड गई है
लेकिन यह ठीक भी है
मेरा डुप्लीकेट बनाया गया
काले धन के रूप में उपयोग किया गया
ऑतकवादियों को शह देने के रूप में किया गया
हिंसा फैलाने और बम- बारूद खरिदने के लिए किया
मैं कब तक यह बर्दाश्त करता
मेरा दम घुट रहा था
लोग न जाने कितने वर्षों से मुझे कहॉ- कहॉ रखा था
मैं मुरझा गया था
बाहर निकलने को आतुर हो रहा था
मुझे भी नवीनता चाहिए थी
एक ही प्रकार से मैं ऊब गया था
अब का मेरा नया रूप गुलाबी ,मुझे भा रहा
मैं इस रंग में खिल भी रहा
और मेरा रूप बदला जाएगा
आप के घर भी मैं आउंगा
प्रतीक्षा कीजिए और स्वागत करिए मेरे नए रूप का
मैं तो आपका सदियों से साथी रहा हूँ
मेरा और आपका अभिन्न नाता है
थोडा धीरज रखिए पर इस बार मुझे बंद कर मत रखिए
मेरा उपयोग कीजिए और जीवन को खुशहाल बनाइए