होली हो ली
जो हो गया वह हो गया
वह आपसे हुआ
दूसरों से हुआ
हो तो गया
गलत या सही
वापस तो नहीं
यही तो करना है
सब छोड़ देना है
होलिका मे सब स्वाहा
तभी जीवन में रंग खिलेगे
नए-नए रंगों से सामना होगा
पुराना तो पुराना हो चुका
साल बीत गए
अब कितना सालोंगे स्वयं को
कितना उसी अग्नि में जलोगे
हो ली तो हो ली
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Wednesday, 31 March 2021
होली
कब जाएंगा यह काल
मैं तो निकला था साहब घर से
अपने बच्चों के लिए कुछ लेने
मचलने लगे खाने के लिए
सोचा कुछ ले आऊं
त्यौहार है
थोड़ी सी मिठाई और नमकीन ले आऊं
कब से बाहर का कुछ खाया नहीं
आखिरी बचा पांच सौ रूपया जेब में रखा
साईकिल उठाया
चल पडा बाजार
इस उत्साह में मास्क लगाना भूल गया
कुछ ही आगे गया
आपने पकड़ लिया
माना मेरी गलती थी
माफी भी मांगी
पर आप नहीं पिघले
नियम - कानून का पालन
पांच सौ जुर्माना
वह दे आया आपको
घर पर बच्चे इंतजार में
आते ही लिपट गए
मैं उनको परे कर एक कोने में मुँह लटकाकर बैठ गया
वे खाऊं खाऊं ढूंढ रहे थे
मैं मुख छिपा रहा था
जो पैसे थे वह भी चले गए
करोना की वजह से न जाने कितना जुर्माना भरें
बद से बदतर हैं हालात
जा - जाकर लौट आ रहा है
इस पर न है कोई लगाम
त्राहि - त्राहि मची है
सब त्रस्त है
जीवन बेजार हुआ है
काम - धंधे का अकाल है
जीते जी मार रहा है
करोना नहीं काल है
बस यह जाएं
यही सबको इंतजार है
हम औरत थी
मुझे सीता नहीं बनना था
वन गमन किया पति के साथ
महलों का एश्वर्य त्यागा
रावण द्वारा अपहरण हुआ
अग्नि परीक्षा भी देनी पडी
फिर भी मुझे स्वीकार नहीं किया गया
इसी समाज ने लांछन लगाया
पति द्वारा गर्भावस्था में त्यागी गई
हो सकता है यह एक राजा की मजबूरी हो
राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम बनें
मुझे धरती माँ की गोद में शरण लेना पडा
अगर मैं पुरूष होती तब
तब तो मैं भगवान कहलाती
अर्धरात्रि को सोती हुई पत्नी और बेटे को छोड़ बोधि ज्ञान की प्राप्ति की खोज में
आए लौट कर तो भिक्षुक के रूप में
सिद्धार्थ तो भगवान बन गए
वहीं अगर मैं करती तब
पति और बच्चे को छोड़ निकल जाती
तब तो समाज न जाने क्या-क्या लांछन लगाता
मीरा ने राजमहल छोडा
न जाने मारने के कितने यतन हुए
फिर भी वह ईश्वर की भक्त बनी रही
उन्होंने ईश्वर के लिए छोड़ा
हमने अपने पति के लिए त्याग किया
राधा ने कान्हा से प्रेम किया
वह गोकुल को नहीं छोड़ी
कृष्ण हमेशा राधा के ही रहें
यशोधरा , सीता , मीरा और राधा
दो ने पत्नी धर्म निभाया
दो ने बस प्रेम निभाया
हम परित्यक्ता रही
पति हमारे पुरुषोत्तम और भगवान बने
यह सब हुआ
हम औरत थी इस पुरूषवादी सोच की परिणति ।
Monday, 29 March 2021
समझ लेना कि होली है
*महा कवि नीरज की कविता....*
करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है
हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि होली है
किसी को याद करते ही अगर बजते सुनाई दें
कहीं घुँघरू कहीं कंगन, समझ लेना कि होली है
कभी खोलो अचानक , आप अपने घर का दरवाजा
खड़े देहरी पे हों साजन, समझ लेना कि होली है
तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आंखें
उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना कि होली है
हमारी ज़िन्दगी यूँ तो है इक काँटों भरा जंगल
अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना कि होली है
बुलाये जब तुझे वो गीत गा कर ताल पर ढफली की
जिसे माना किये दुश्मन, समझ लेना कि होली है
अगर महसूस हो तुमको, कभी जब सांस लो 'नीरज'
हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना कि होली है
*होली की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं*🙏🏻
Sunday, 28 March 2021
खत से मोबाइल पर तुम वहीं के वहीं
पति देव हमारे हैं अनुशासन प्रिय
हर चीज में अनुशासन
खाने - पीने से लेकर बातचीत तक
हम तो ठहरे कवि प्रवृत्ति
बेपरवाह , मनमौजी
बात उस जमाने की है
जब खत से वार्तालाप होता था
खत हम भेजते थे
खूब लंबा - चौडा
प्यार भरी बातें
कुछ शायरी कुछ कविता
साहित्य के विधार्थी ठहरे हम
शब्दों की तो कमी नहीं
कहते पत्र लेकर हाथ में तौल कर देखता हूँ
कितना वजन है
तब ड्यूटी से फ्री होकर आराम से पढता हूँ
जवाब में पत्र तो एकदम समय से आता था
उत्सुकता थी खोलकर देखने की
यह क्या
अंतर्देशीय में या लिफाफे में
बस गिन - चुनकर चार वाक्य
मैं ठीक हूँ
तुम कैसी हो
ठीक से रहना
सबको प्रणाम
खत को देखकर सर पर हाथ रख लेती
क्या आदमी हैं
इतना भी नहीं लिख सकते
कि तुम्हारी याद आती है
तुमसे बहुत प्यार करता हूँ
एक बार मैंने उनसे शिकायत की
जवाब में लंबा - चौडा दो पन्नों का खत
इतना लिखूं तब तुमको समझ में आएगा
मैं तुमको चाहता हूँ
उसके बाद से तो मैंने कान पकड़ तौबा कर ली
जमाना बदला
फोन का समय आया
सिलसिला वही रहा
एस टी डी से फोन करते
बात उतनी ही चार वाक्य की करते
फिर आया मोबाइल का
वह भी समय तय
आठ बजे तो आठ बजे आना है
नेट में गडबड हो तब परेशान
जब तक न लगे तब तक
आज चालीस साल हो गए हैं
यह याद नहीं कि उनका फोन न आया हो
हाँ कुछ टेक्निकल प्रॉब्लम से भले हुआ हो
वह भी एकाध बार
वह व्यक्ति जो प्रेम के एक शब्द नहीं कह सकता पर
फोन करने के लिए दो किलोमीटर आता हो
जहाँ सुविधा न हो
तब यह बात कहना जरूरी नहीं कि
तुम्हारी याद आती है
गंभीर और नीरस
फिर भी कुछ बात तो हैं
जिससे हम आज तक बंधे हैं
बहुत उतार - चढाव देखा है जिंदगी में
फिर भी हारे नहीं
आत्मविश्वास था
पता था हम आगे - आगे
तुम पीछे - पीछे भले चलो
पर चलोगे तो सही
करोंगे भी वहीं
जो हम चाहे
Saturday, 27 March 2021
तुम किसके हो
कुछ कसूर नहीं मेरा
फिर भी है सुनना
कभी सोचती
यह किस अपराध की सजा
तुम तो मनमानी करते रहे
पीसती तो मैं रही
तुम अपना कर्तव्य निभाते रहे
समाज को दिखाने के लिए
अपने परिवार के लिए
मुझे अनदेखा करते रहे
मैं कुढती रही
कुछ बोला तो चुप कराते रहे
कर्तव्य निभाना अच्छा है
पर मेरे प्रति भी तो कर्तव्य बनता था
वह तो पूरी संजीदगी से तुमने कभी निभाई नहीं
मैं संपूर्णता चाहती थी
वह तो तुमने अधूरा ही रखा
बंटा रहा तुम्हारा व्यक्तित्व
हर बात सुनी
हर आज्ञा का पालन किया
भले मैं टूटी होगी
पर तुमको टूटने न दिया
ऑखों में ऑसू आए होंगे
उसको भी छिपा रखा
दिल की बात कहना चाहा
वह डर के मारे होंठो पर न आया
तुमने हमेशा चुप कराया
अगर मैं अपने पर आ जाती
तब तो तुम और तुम्हारा यह परिवार बिखर गया होता
आज तक यह समझ न आया
तुम्हारा परिवार कहाँ है
तुम्हारा घर कहाँ है
सच्चाई क्या है
तुम किसके हो
महागुरू कृष्ण
कभी सूरदास ने एक स्वप्न देखा था,
कि रुक्मिणी और राधिका मिली हैं और एक दूजे पर निछावर हुई जा रही हैं।
सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी। दोनों ने प्रेम किया था। एक ने बालक कन्हैया से, दूसरे ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से। एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था, और दूसरे को मिले थे सुदर्शन चक्र धारी, महायोद्धा कृष्ण।
कृष्ण राधिका के बाल सखा थे, पर राधिका का दुर्भाग्य था कि उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा। राधिका को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर कृष्ण मिले, न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण मिले।
रुक्मिणी कृष्ण की पत्नी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण रखता है। उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को। उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन।
कितनी अद्भुत लीला है, राधिका के लिए कृष्ण कन्हैया था, रुख्मिनी के लिए कन्हैया कृष्ण थे। पत्नी होने के बाद भी रुख्मिनी को कृष्ण उतने नहीं मिले कि वे उन्हें "तुम" कह पातीं। आप से तुम तक की इस यात्रा को पूरा कर लेना ही प्रेम का चरम पा लेना है। रुख्मिनी कभी यह यात्रा पूरी नहीं कर सकीं।
राधिका की यात्रा प्रारम्भ ही 'तुम' से हुई थीं। उन्होंने प्रारम्भ ही "चरम" से किया था। शायद तभी उन्हें कृष्ण नहीं मिले।
कितना अजीब है न! कृष्ण जिसे नहीं मिले, युगों युगों से आजतक उसी के हैं, और जिसे मिले उसे मिले ही नहीं।
तभी कहता हूँ, कृष्ण को पाने का प्रयास मत कीजिये। पाने का प्रयास कीजियेगा तो कभी नहीं मिलेंगे। बस प्रेम कर के छोड़ दीजिए, जीवन भर साथ निभाएंगे कृष्ण। कृष्ण इस सृष्टि के सबसे अच्छे मित्र हैं। राधिका हों या सुदामा, कृष्ण ने मित्रता निभाई तो ऐसी निभाई कि इतिहास बन गया।
राधा और रुक्मिणी जब मिली होंगी तो रुक्मिणी राधा के वस्त्रों में माखन की गंध ढूंढती होंगी, और राधा ने रुक्मिणी के आभूषणों में कृष्ण का बैभव तलाशा होगा। कौन जाने मिला भी या नहीं। सबकुछ कहाँ मिलता है मनुष्य को... कुछ न कुछ तो छूटता ही रहता है।
जितनी चीज़ें कृष्ण से छूटीं उतनी तो किसी से नहीं छूटीं। कृष्ण से उनकी माँ छूटी, पिता छूटे, फिर जो नंद-यशोदा मिले वे भी छूटे। संगी-साथी छूटे। राधा छूटीं। गोकुल छूटा, फिर मथुरा छूटी। कृष्ण से जीवन भर कुछ न कुछ छूटता ही रहा। कृष्ण जीवन भर त्याग करते रहे। हमारी आज की पीढ़ी जो कुछ भी छूटने पर टूटने लगती है, उसे कृष्ण को गुरु बना लेना चाहिए। जो कृष्ण को समझ लेगा वह कभी अवसाद में नहीं जाएगा। कृष्ण आनंद के देवता है। कुछ छूटने पर भी कैसे खुश रहा जा सकता है, यह कृष्ण से अच्छा कोई सिखा ही नहीं सकता। महागुरु है मेरा कन्हैया... COPY PASTE
Wednesday, 24 March 2021
ऐ जिंदगी कब संभलेगी
जिंदगी भर जिंदगी को संभालता रहा
वह टूटती रही मैं जोड़ता रहा
वह बिखरती रही मैं समेटता रहा
यह करते - करते मैं तो थक गया
वह न थकी न हारी
कब हाथ से फिसली
यह भी तो आभास नहीं दिया
चुपके से आई और तूफान मचा दिया
इस तूफान को मैं कैसे रोकता
यही सोचता रहा
उसमें डूबता - उतराता रहा
आखिर में थक - हार कर छोड़ दिया
जिंदगी तू बहुत जिद्दी है
बस अपनी मनमानी करती है
किसी की भी नहीं सुनती है
कितना भी जतन कर लें
तुझे तो जो करना है
वही तो करती है
तब लगता है
सब कुछ छोड़ दूँ
तुझे भी
तुझसे मुक्त हो जाऊं
तुझे भाग्य पर छोड़ निश्चिंत हो जाऊं
अनुपम प्रेम
प्रेम में कोई बंधन नहीं होता
जहाँ बंधन वहाँ प्रेम नहीं होता
बंदिशो में बंधा हुआ
वह प्रेम नहीं
जहाँ स्वतन्त्रता हो
जबरदस्ती थोपा हुआ न हो
अपने तरह से जीवन जीने की आजादी हो
अपनी इच्छाओं के लिए दूसरे पर हावी
अपनी मर्जी से चलने के लिए मजबूर
प्रेम में दूसरे को बदलना नहीं
स्वयं को ढालना पडता है
एक - दूसरे की भावनाओं की कदर करना पडता है
खुशी होती है
कुछ करने के लिए
अपना अस्तित्व अपना मान
यह छोडना पडता है
राधा को कान्हा और कान्हा को राधा बनना पडता है
एक - दूसरे के मिलन से राधेश्याम हो जाते हैं
तब वह अनुपम प्रेम होता है
Tuesday, 23 March 2021
वह तो सर्वव्यापी है
किससे कहूँ दिल की बात
नहीं यकीं किसी पर
अपनी भावनाओं को शब्दों में उकेरना
जो कह नहीं पाते
वह अपनी लेखनी से कहना
किस पर विश्वास करें
किस को अपने दुख - दर्द सुनाए
जब सैलाब उमड़ता है
तब वह कविता कहलाती है
उपजती है अंर्तमन से
अशांत मन को कुछ तो सुकून दे जाती है
शब्दों की तह में जाती है
बहुत कुछ अपने आप कह जाती है
वह शब्द नहीं होते
शब्दों में हम ही होते हैं
समझ सके तो समझ ले
न समझे तो न समझे
हमने तो उकेरी है भावना
वह शायद केवल हमारी नहीं
किसी और की भी तो हो सकती है
कविता जरूरी नहीं
कवि की ही हो
वह तो सर्वव्यापी है
Saturday, 20 March 2021
विश्व प्रसन्नता दिवस
गुलाब मुरझाता है
फिर भी मुस्कराता है
खुशी की कोई कीमत नहीं
यह तो सभी को हासिल है
प्रसन्नता के लिए कुछ लेना - देना नहीं
यह तो हमारे अंतर्मन की उपज है
कोई सब कुछ पाकर भी कुछ नहीं
कोई फटेहाल हालात में भी प्रसन्न
हर किसी को प्रसन्न रहने का अधिकार
बूढा हो या बच्चा
अमीर हो या गरीब
औरत हो या आदमी
प्रसन्नता ऐसी औषधि है
जिसने इसको ग्रहण किया
उसने अपने आसपास को भी सुखमय किया
प्रसन्नता का दामन पकडे
खुश रहे दूसरों को भी रहने दें
विश्व गौरैया दिवस
आंगन में आती गौरैया
ची ची करती
सुबह-सुबह हमको जगाती
खिडकी दालान में घोसले बनाती
कुछ ज्यादा की चाह नहीं
बस कुछ दाने ही काफी
घर के आसपास मंडराती
आज जाने कहाँ गुम हो रही
यह नाजुक सी चिडियाँ
गाँव - घर की पहचान चिडिया
इनको भी रहने का है अधिकार
कहीं हो न जाएं
विकास की चकाचौंध में इनकी ची ची गायब
इनका भी घर रहने दो
इनको भी मुक्त विचरने दो
मैं माटी हूँ
पैरों को मिट्टी की आदत नहीं है
यह पैर चले हैं मार्बल पर टाइल्स पर
इसलिए तो मिट्टी भाती नहीं है
वह शहर है
यह गांव है
गाँव की मिट्टी भी बडी जिद्दी है
न चाहते हुए भी गाहे - बगाहे लिपट ही जाती है
मानो कहती हो
कितना भी पीछा छुड़ाओ
मैं छोड़ने वाली नहीं हूँ
जडे तो यहीं हैं
कितना भी उखाड़ो
फिर भी मैं तो पकड़े ही रहूंगी
सच ही तो है
ऊपर से कुछ भी कैसा भी हो
अंदर तो मिट्टी ही है
वह नीचे बैठी है जम कर
तब यह टाइल्स चमक रहे हैं
हमारी जडे भी तो गाँव में ही है
कितना भी बदलाव आ जाएं
कहीं न कहीं मन के किसी कोने में
एक गांव समाया रहता है
जिसकी पूर्ति हम फार्म हाउस , रिसोर्ट से करते हैं
हरियाली की तलाश में
सुकून और शांति की खोज में
शहर की आपाधापी से दूर
माटी से हम कितना भी दूर भागे
वह अपनी महक तो भर ही देती है हममें
वह शहर की चकाचौंध कुछ समय के लिए भूला ही देती है
माटी की सौंधी सौंधी महक खिंचती है
कहती है कब तक दूर रहोंगे मुझसे
मैं तो माटी हूँ
मुझमें ही जन्म
मुझमें ही मृत्यु
मुझसे भाग कर जाना इतना आसान तो नहीं
जीवन इतना आसान तो नहीं
किसी ने मुझसे कहा
आपका क्या है
आराम का जीवन है
पेंशन मिल रही है
रूपये - पैसे की कोई कमी नहीं
हमारा क्या है
हमारे पास तो अभी कुछ नहीं
सोच कर दुखी
यह किसी एक की बात नहीं
बहुतायत यही होता है
वह मेरे आज से अपनी तुलना कर रहा है
इस आज तक आने में हमें चालीस साल लगे
पूरे चार दशक बीत गए
मेरे आज से अपनी तुलना
दुख के सिवा कुछ नहीं हासिल
मेरे आज से अपने आने वाले भविष्य को तोले
कर्म और संघर्ष करें
जीवन में त्याग बिना कुछ हासिल नहीं
बहुत संघर्षों के बाद यह हासिल हुआ है
जिंदगी के अनमोल पल दिए हैं
जिंदगी देकर खुशी पाई है
वह तो वही समझ सकता है
जो संघर्षों से होकर गुजरा है
बहुत कुछ खोना पडता है
कुछ पाने के लिए
जीवन इतना आसान तो नहीं
हमारी जिंदगी
जिंदगी का क्या है
वह नित नए खेल खेलती रहती है
कब पलटी खा जाएं
यह तो कोई नहीं जानता
आज कुछ और कल कुछ और
पल पल बदलती रहती है
इस पर कैसे विश्वास करें
ख्वाबों को एक झटके में चकनाचूर कर देती है
कब आसमान से जमीन पर ला पटक दे
कब सर ऑखों पर बिठा ले
उसका खेल तो वह ही जानती है
नित परिवर्तनशील
कल , आज और कल
इसी के बीच हम
यह हमारी होकर भी हमारी नहीं
Friday, 19 March 2021
भरोसा है अपने पर
यह पेड़ मेरा आसरा है
यह बात तो मुझे भलीभाँति पता है
लेकिन यह भी पता है
न जाने कब कोई झंझावात आ जाएं
कब कोई डाली टूट जाएं
तब भी मैं गिरूगा नहीं
मुझे अपने आप पर
अपने पंखों पर भरोसा है
मैं पूर्ण रूप से उस पर निर्भर नहीं
कब कौन सा सहारा खत्म हो
कब कौन छूट जाएं
इससे तो हर कोई अंजान
उडान भरनी है तो अपने दम पर
आत्मनिर्भरता तो जीवन की मांग है
कब तक कोई साथ चलेगा
चलना तो अकेले ही है
मंजिल पर पहुंचना भी अकेले ही हैं
तब भरोसा हो अपना
मैं सागर हूँ
गहरा हूँ सब कुछ समाता हूँ अपने में
फिर भी शांत रहता हूँ
परीक्षा मत लो मेरी
अगर अपने पर आ जाऊं
तब तो किसी की खैर नहीं
मैं तो अपनी सीमा में रहता हूँ
विशालता ही मेरी पहचान
न जाने क्या क्या समेटे हुए अपने में
मैंने न जाने कितने युग देखे हैं
इतिहास गवाह है
मैं कभी अवांछित को अपने में समाता नहीं
बाहर किनारे पर फेंक देता हूँ
जब तक सहता हूँ तब तक ठीक
अन्यथा सुनामी आने में देर नहीं ।
मेरी क्षमता का आकलन करना मुश्किल
मेरी गहराई नापना असंभव
मैं अपने में अमृत और विष दोनों समाएं हुए
सागर हूँ साग नहीं
कि मुझसे कैसा भी व्यवहार हो
मुझे बंधन में बांधा जाए
मेरी सीमा जानने से पहले अपनी सीमा जाननी होगी
तभी सभी का कल्याण ।
बच्चों का मन
मैं कुत्ते को हर रोज बिस्किट खिलाती हूँ।
उस दिन खिला रही थी
अचानक दो - तीन बच्चे आकर खडे हो गए
उत्सुकता से निहार रहे थे
अचानक आपस में फुसफुसाने लगे
एक कह रहा था
देखो कुत्ते का भाग्य कितना अच्छा है
उसे बिस्किट खाने को मिल रहा है
हमें तो सूखी रोटी भी फेंक कर मिलती है
अपने को भी कोई प्रेम से खिलाता
सब लोग दुत्कारते हैं
लगा यह कैसी विडंबना है
हर जीव का अधिकार है भोजन का
वह जानवर हो या मनुष्य
ऐसा नहीं कि पशु को न खिलाया जाय
पर्स में से बिस्किट का पैकेट निकाला
आगे बढाते ही लपक कर ले लिया
उछलते - कूदते भाग गए
उनकी हंसी और मुस्कान
उस बिस्किट के सामने कुछ भी नहीं थी ।
उडान न रोके
बच्चा है
उसका कुछ अधिकार है
खेलना - कूदना
मत रोके
पढाई के नाम पर
पढना जरूरी है
पर गुलामी नहीं
पूरा दिन किताब में सर गडाए
कमरे को जेल और उसे कैदी बना कर
यह तो सरासर उसके बालपन के साथ अन्याय
तब तो वह सिमट कर रह जाएंगा
उस बाॅयलर मुर्गे की तरह
चूजों को पालते हैं
खाना - पीना देकर उनको तैयार कर देते हैं
मोटा - ताजा पर वह किसी काम का नहीं
सुरक्षा और देखभाल उतनी ही
जितनी आवश्यक
आवश्यकता से ज्यादा हो जाय तब तो अवरूद्ध
बाज पक्षी बनाएं
उडने के लिए छोड़ दे
नजर रखें कि वह गिरे नहीं
पर उसकी उडान को न रोके
जो बात मुझमें है वह तुममें कहाँ ??
फर्क है तुझ में और मुझ में
तु गमले का फूल
मैं बंजर धरती में उगा फूल
मुझे किसी ने लगाया नहीं
सहेजा नहीं
खाद - पानी भी नहीं मिला
फिर भी मैं खिला
आंधी - तूफान , बरसात
सबको सहता रहा
मैं स्वयं बढा
तुम्हें तो लगाया गया
देखरेख की गई
समय पर खाद्य - पानी डाला गया
सुरक्षित रखा गया
वह सब मुझे हासिल नहीं
यही तो सबसे बडा फर्क
मैं तो कहीं भी एडजस्ट कर लूंगा
तुम तो नहीं कर पाओगे
मेरा हर अनुभव मेरा है
जीवन को किस तरह जीना
यह मैंने स्वयं सीखा है
हर मौसम का सामना करना आता है
क्योंकि मैं गमले का फूल नहीं
अनंत आकाश के तले बंजर धरती में उपजा
अपने ही बल पर
जो बात मुझमें है
वह तुममें कहाँ ??
नीम की मिठास
माना कि तुम नीम की तरह हो
जैसे वह कडवा वैसे तुम भी
फिर भी वह कितना उपयोगी
अपनी शीतल छाया देता है
उसकी छांव तले बैठ सुकून मिलता है
औषधीय गुणों से भरपूर
कहीं चोट लग जाएं
तब उसकी छाल घिस कर लगा ली
हर रोग में रामबाण
तुम भी तो कुछ कुछ वैसे ही हो
थोड़े नीरस थोड़े कडवे
वह तो स्वभाव तुम्हारा
वह तो बदलने से रहा
तुम्हारे सानिध्य का सुख
तुम पर ही विश्वास
तुमसे ही निश्चिंतता
सब भार अपने ले
कष्ट सह मेहनत कर
हमें सुख और खुशी देखने की कोशिश
तुम्हारा त्याग और समर्पण
हमारे ही इर्द-गिर्द तुम्हारी दुनिया
तब और क्या चाहिए
उस प्रेम में तुम्हारी कडवाहट कहीं लुप्त
सवाल लोग पूछते हैं
ये इतने गुस्सैल
बुरा नहीं लगता
शायद नहीं
क्योंकि उस गुस्से में मुझे प्यार दिखता है
जवाब देती हूँ
आदत हो गई है
अगर जिस दिन गुस्सा न हो चुप हो
उस दिन कुछ गडबड लगता है
प्रेम की चाशनी में डुबोकर बोले
तब एबनार्मल लगता है
उनके गुस्से पर भी प्यार आता है
ये वह नीम है जो कडवी होने पर भी मीठी लगती है
Thursday, 18 March 2021
बाज पक्षी
#बाज
________
बाज पक्षी जिसे हम ईगल या शाहीन और चील भी कहते है। जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते है उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है। पक्षियों की दुनिया में ऐसी Tough and tight training किसी और की नही होती।
मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग 12 Km ऊपर ले जाती है। जितने ऊपर अमूमन हवाई जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लेती है। यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की कठिन परीक्षा। उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है ? तेरी दुनिया क्या है ? तेरी ऊंचाई क्या है ? तेरा स्थान बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है।
धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग 2 Km उस चूजे को आभास ही नहीं होता कि उसके साथ क्या हो रहा है। 7 Kmt. के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते है, वह खुलने लगते हैं। लगभग 9 Kmt. आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते है। यह जीवन का पहला दौर होता है जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है।
अब धरती से वह लगभग 3000 मीटर दूर है लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है। अब धरती के बिल्कुल करीब आता है जहां से वह देख सकता है अपने इलाके को। अब उसकी दूरी धरती से महज 700/800 मीटर होती है लेकिन उसका पंख अभी इतना मजबूत नहीं हुआ है की वो उड़ सके। धरती से लगभग 400/500 मीटर दूरी पर उसे अब लगता है कि उसके जीवन की शायद अंतिम यात्रा है। फिर अचानक से एक पंजा उसे आकर अपनी गिरफ्त मे लेता है और अपने पंखों के दरमियान समा लेता है।
यह पंजा उसकी मां का होता है जो ठीक उसके उपर चिपक कर उड़ रही होती है। और उसकी यह ट्रेनिंग निरंतर चलती रहती है जब तक कि वह उड़ना नहीं सीख जाता। यह ट्रेनिंग एक कमांडो की तरह होती है, तब जाकर दुनिया को एक बाज़ मिलता है अपने से दस गुना अधिक वजनी प्राणी का भी शिकार करता है।
एक कहावत है... "बाज़ के बच्चे मुँडेरों पर नही उड़ते....."
बेशक अपने बच्चों को अपने से चिपका कर रखिए पर उसे दुनियां की मुश्किलों से रूबरू कराइए, उन्हें लड़ना सिखाइए। बिना आवश्यकता के भी संघर्ष करना सिखाइए।
वर्तमान समय की अनन्त सुख सुविधाओं की आदत व अभिवावकों के बेहिसाब लाड़ प्यार ने मिलकर, आपके बच्चों को "ब्रायलर मुर्गे" जैसा बना दिया है जिसके पास मजबूत टंगड़ी तो है पर चल नही सकता। वजनदार पंख तो है पर उड़ नही सकता क्योंकि..
"गमले के पौधे और जमीन के पौधे में बहुत फ़र्क होता है।"COPY PASTE
Saturday, 13 March 2021
भगवान राम और शबरी
एक टक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे :-
*"कहो राम ! सबरी की डीह ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ ?"*
राम मुस्कुराए :-
*"यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य ?"*
*"जानते हो राम ! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्में भी नहीं थे|*
यह भी नहीं जानती थी,
कि तुम कौन हो ?
कैसे दिखते हो ?
क्यों आओगे मेरे पास ?
*बस इतना ज्ञात था, कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा|*
राम ने कहा :-
*"तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था, कि राम को सबरी के आश्रम में जाना है”|*
"एक बात बताऊँ प्रभु !
*भक्ति के दो भाव होते हैं | पहला ‘मर्कट भाव’, और दूसरा ‘मार्जार भाव’*|
*”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न... उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है, और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है| दिन रात उसकी आराधना करता है...”* (मर्कट भाव)
पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया| *”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी, जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है... मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना..."* (मार्जार भाव)
राम मुस्कुरा कर रह गए |
भीलनी ने पुनः कहा :-
*"सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न... “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं”| तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी... यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते ?”*
राम गम्भीर हुए | कहा :-
*भ्रम में न पड़ो मां ! “राम क्या रावण का वध करने आया है” ?*
*रावण का वध तो, लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर कर सकता है|*
*राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है, तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि “सहस्त्रों वर्षों बाद, जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे, कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था”|*
*जब कोई भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं ! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ, एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है|*
*राम वन में बस इसलिए आया है, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाय, तो उसमें अंकित हो कि ‘शासन/प्रशासन/सत्ता’ जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है”|*
(अंत्योदय)
*राम वन में इसलिए आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं| राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया हैं मां|*
माता सबरी एकटक राम को निहारती रहीं |
राम ने फिर कहा :-
*राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए”|*
*राम निकला है, ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है”|*
*राम निकला है, कि ताकि “भारत को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है”|*
*राम आया है, ताकि “भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है”|*
*राम आया है, ताकि “युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है, कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय”|*
और
*राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी सबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं”|*
सबरी की आँखों में जल भर आया था|
उसने बात बदलकर कहा :- *"बेर खाओगे राम” ?*
राम मुस्कुराए, *"बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां"*
सबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया|
राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा :-
*"बेर मीठे हैं न प्रभु” ?*
*"यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां ! बस इतना समझ रहा हूँ, कि यही अमृत है”|*
सबरी मुस्कुराईं, बोलीं :- *"सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम"*।
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