ढोल, गँवार, शुद्र, पशु, नारी में सब ताड़न के अधिकारी।
उसी रामचरित मानस की नारियाँ चाहे वह कैकयी, सीता या सुलोचना हो, उस समय की विद्रोहिणी नारियाँथी।
बड़े पुत्र को ही राजगद्दी क्यों ? देवासुर संग्राम में राजा दशरथ के साथ बराबरी से लड़ने वाली कैकयी को यह बात रास नहीं आयी। भरत को राजगद्दी मिले इसके लिए वह किसी भी हद तक जाना पड़ा, गयी।
महल में नहीं, सहधर्मिणी बन कर साथ रहूंगी। महलों को त्याग कर बाहर कदम रखने वाली नारी सीता।
मेघनाथ का कटा हुआ सर लाने रामादल में जाना इतना साहस सुलोचना के अलावा और कौन कर सकता था।
रावण का विरोध ,दशानन का मंदोदरी के सिवा किसका साहस हो सकता था
सीता का साथ देने वाली त्रिजटा
पत्थर बनी अहिल्या ,सुग्रीव की पत्नी तारा
यहॉ तक कि झूठे बेर खिलाने वाली शबरी जिसने जातिगत मान्यताओं को ठेंगा दिखा कर भगवान को भी अपने प्रेम के आगे झुका दिया
यह तो शुरूवात थी और आज वह बीज पेड बन कर लहलहा रहा है
हर क्षेत्र में परचम फहरा रहा है
जमीन से लेकर अंतरिक्ष तक
आज अबला नहीं सबला बन कर उभरी है
No comments:
Post a Comment