Monday, 23 March 2015

किताब और जिंदगी


पढ़ना - लिखना, खेलना - कूदना, मौज - मज़ा,
बचपन के वे दिन भी क्या दिन थे,

जैसे - जैसे समय बीतता गया, सब छूट गया,
रह गई केवल आसपास किताबें और उनका ढेर,

एक समय था की पढ़ना शौक था,
आज मजबूरी बन गयी है,
जिंदगी किताबों के बीच बंधकर रह गई। 

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