Friday, 19 February 2016

क्या हो गया है हमारी इंसानियत को ...

एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हो जाता है
एक्सीडेंट करनेवाला तो भाग जाता है
वह व्यक्ति तडपता रहता है सडक पर
मदद की गुहार लगाता है पर कोई आगे नहीं आता
जाते -जाते वह अपने शरीर के अंगो को भी दान करते जाता है
यह घटना है बंगलूर की जहॉ एक युवा इंजीनियर की यह दुखद मौत हुई है
अगर तोड फोड करना हो  ,बस जलाना हो तो हजारों की तादाद में लोग जूट जाते हैं
पर जीवित को बचाने कोई नहीं आता
लोग तमाशबीन बने रहते हैं

निर्भया कॉड पर लाखों लोग जूट आते हैं
आंदोलन पर उतारू हो जाते हैं
पर निर्भया अगर सडक पर मदद के लिए गुहार लगाए तो कोई नहीं आता
क्यों लोग डरते हैं क्या या इंसानियत ही खत्म हो गई है
समय नहीं है या कौन झंझट ले
कानून व्यवस्था को भी लचर बनाया जाय
बचाने वाले को ज्यादा परेशान न होना पडे
बल्कि उसके लिए उनको सम्मानित किया जाय
एक जिंदगी अनमोल होती है
उसको बचाने की कोशिश करना इससे बडा पुण्य क्या होगा
इस नौजवान ने जाते जाते सिखाया कि मुझे कोई मददगार नहीं मिला
फिर भी मैं मदद करना चाहता हूँ
हरीश की आँखे दान कर दी गई है
शर्म आती है कि इतने अमानवीय कि मोबाइल से पिच्चर ले आगे बढ गए
बाद में कुछ लोग आगे आए  ,अगर समय पर सहायता मिलती तो एक युवा की जिंदगी शायद बच जाती

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