Friday, 1 April 2016

ईश्वर के दरबार में प्रवेश करने के लिए भी संघर्ष

आज औरतें और महिलाएं बडे -बडो पदों पर आसीन है और सफलता पूर्वक अपना लोहा भी मनवा रही है
पर हर जगह अपने अधिकार पाने के लिए लडाई
चाहे वह घर हो या भगवान का मंदिर
कानून में तो उनको समान अधिकार दिया है
पर सच में ऐसा है क्या?
क्यों उनके ऊपर ही पांबदी कि
यह काम करना है और यह काम नहीं
आज महिला पुरोहित भी है और साध्वी भी
धार्मिक परम्पराओ को बनाने वाले कौन है
मानव जाति ही
पुराण और धार्मिक ग्रंथों का हवाला दिया जाता है
और यह हर धर्म में है
औरत को ही परदे में क्यों रहना है
सब जगह परिवर्तन हो रहा है तो पुरानी मान्यवताओं में भी ,उनको पकड कर रखना यह कहॉ की समझदारी है
पहले परदे में रहने वाली महिला आज दुनियॉ की सैर करा रही है
और फौज में बंदूक लेकर भी खडी है
अब वह अबला नहीं है ,अपने पैरों पर खडी है
और हर जगह अपनी भागीदारी चाहती है और वह उचित भी है
अगर उसको शनि शिंगणापूर या फिर त्रंयबंकेश्वर के गर्भगृह में प्रवेश करना है तो मनाही क्यों?
और यह उस हक को पाने के लिए लड रही है
और पाकर ही रहेगी
घर से बाहर तक हर लडाई उन्होंने की है
चाहे वह शिक्षा का हो या नौकरी का
अब वह पुरूषों की दासी नहीं कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है और
कुछ जगहों पर तो उनसे भी आगे निकल गई है
समाज तभी उन्नति करेंगा जब सब उन्नति करें
आधी आबादी को अधिकार से वंचित कर कोई भी समाज ,देश उन्नति नहीं कर सकता
अपनी मानसिकता में बदलाव लाना चाहिए
और उनकी क्षमताओं का उपयोग करने में ही सभी की भलाई है

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