Tuesday, 30 September 2025

वक्त है यह

आज गाड़ी से गुजरते हुए अचानक उस घड़ी पर नजर पड़ गई।  तब तक गाड़ी सिग्नल पर रुक गयी थी ।
मेरा मन भी अतीत में चला गया 
बहुत कुछ उमड़ने घुमड़ने लगा 
मुख पर मुस्कान आ गई 
यह राजा बाई टावर की घड़ी थी जो ब्रिटिश काल से हैं 
मुंबई यूनिवर्सिटी की इमारत है 
इसका घंटा बजता रहता है समय दर्शाते हुए 
याद आ गए वे दिन 
इसी की लाइब्रेरी में बैठकर घंटों नोट्स बनाए थे 
प्रेमचंद- अज्ञेय - पंत को खूब पढ़ा
कबीर और तुलसी को छान मारा 
नीचे बैठकर घंटों गप्पे मारे 
लाॅन में लेक्चर बंक कर कविता पाठ और चर्चा की 
टहलकदमी करते थे घंटों 
ऐसे ही भटकते थे कभी सड़कों पर
कभी बगल में जहांगीर आर्ट गैलरी में 
उसके छत पर बैठ चाय की चुस्की और सैंडविच का स्वाद लेते 
फैशन स्ट्रीट में भटकंती करते 
मरीन ड्राइव के पत्थर पर बैठकर समुद्र की लहरों को निहारते 
किनारे होते घर का रास्ता नापते 
बिना कारण हंसते थे तब
समय का तो पता ही नहीं चलता था 
एक बार छात्रों के हंसने पर किसी एक सर ने कहा था 
हंस लेने दो 
जवानी हंस रही है 
वह दौर भी ऐसा 
जिसने किताबों से नाता जोड़ा जो आज तक बरकरार है 
जवानी की साथी अब तक साथ निभा रही है 
घड़ी तो अब भी वैसे ही टिक - टिक कर रही है 
समय बता रही है 
हमारा समय बीत गया 
बीता जा रहा है 
वक्त है यह 

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