Thursday, 16 June 2016

बादलों अब तो बरस जाओ

तपती गर्मी ,तपती धरती,तपता आसमान
सब कुछ तप रहा है
जीना मुहाल हो गया है
पंखा ,कूलर हार मान बैठे हैं
कब कृपा करोगे लोगों पर बादल राजा
सबकी ऑखे तुम पर
सबकी आस तुमसे
क्या इंसान क्या जानवर
किसान सूख रहे फसलों को देख रहा है
जमीन और मकान गिरवी रखने की नौबत आ गई
तुम आए भी तो कुछ देर के लिए झलक दिखला चले गए ,कुछ बूंदों के साथ
तपन तो और बढ गई
अनाज और सब्जी के दाम आसमान पर
गरीब का पेट भरना मुश्किल
तुम तो सब जानते हो
तुम्हारा आगमन तो सबको आंनदित कर देता है
फिर भी तुम हो कि जरा भी पसीज नहीं रहे हो
पत्थर जैसा दिल हो गया तुम्हारा
कब तक यह चलेगा , कुछ तो दया करो
बादल राजा अपने लोगों की सुध लो.
घन-  घन ,उमड- घुमड कर बरसो
सबको तृप्त करो ,बस अब न तडपाओ
बस जल्दी आओ

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