Saturday, 8 October 2016

विकास और योगदान

आज यहॉ ,कल वहॉ ,परसो न जाने कहॉ
शहर का विकास हो रहा
सडके ,पुल और गगनचुंबी ईमारते बन रही
मजदूर डेरा डाल पडे हैं
दिन- रात काम ,निर्माण की आवाज
छोटी - छोटी प्लास्टिक और पतरे की झोपडी डाल पडे
यही बच्चे जन्म ले रहे ,पल रहे ,बढ रहे
वर्षों इसी तरह गुजरना
वीरान और साधनहीन जगहों पर गगनचुंबी अट्टालिकाएं
चमचमाती सडक ,रफ्तार से भागते पुल
पर जिनका पसीना बहा है अब उनकी जरूरत नहीं
यहॉ अमीरों का बसेरा है
गरीब हिकारत से देखा जा रहा है
उनको भगाया जा रहा है
किसी को याद भी नहीं
इन्हीं का खून - पसीना बहा है इसे बनाने में
इन्होंने अपनी जवानी इसी में गुजार दी
पत्थरों और सीमेंट को जोडते - जोडते
विकास के मार्ग बनाते - बनाते ये पीछे छूट गए
लोग भूल गए कि अमीर रह रहे हैं वह इन्हीं गरिबों और मजदूरों ने बनाया है
विकास हुआ पर पसीना इनका बहा
हर विकास के पीछे बहुतों का योगदान होता है

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