Tuesday, 1 November 2016

दिवाली आई ,दिल मिलाई ,दिवाला भी कर गई

दिवाली आई और दिल मिलाई
एक - दूसरे को करीब लाई
जो रूठे थे उनको पास ले आई
दुश्मन को फिर से दोस्त बना गई
मिठाईयॉ बॉटी भी ,खाई भी
कपडे भी खरिदे और गहने भी खरिदे
बर्तन से लेकर न जाने क्या - क्या
सेल भी लगे थे ऑफर भी था
जमकर खरिदारी की
पटाखे भी उडे और आतिशबाजी भी की
सब कुछ जमकर और जोरदार
पर पीछे कुछ प्रश्न भी छोड गई
प्रदूषण कितना बढा
पैसे कितने खर्च हुए
अनावश्यक क्या- क्या किया
मिठाइयों से कितना वजन बढाया
ऐसा तो नहीं कि दिवाला निकाल गई
जोश में आकर होश खो दिए.
पैसे को पानी की तरह बहाया
लक्षमी का स्वागत तो किया
पर पटाखे जलाकर उडाए भी
कुछ जुए में दॉव लगा
कुछ बूढे और बीमार भी परेशान हुए.
बिजली का अपव्यय हुआ
इतनी रोशनी कि बाद में कही अंधेरा न हो
कितनी जगह आग लगी
न जाने कितना भस्म हुआ
ऐसे बहुत से प्रश्न है जो दिवाली छोड गई
सैनिकों के नाम से और उनके साथ भी
दिवाली मनी पर ???
स्वच्छता का पाठ पढाती दिवाली
जाते- जाते कूडे - करकट का ढेर भी छोड गई
अमावस की रात तो उजली हुई
पर दिन का प्रकाश प्रदूषण से धीमा कर गई
हमको यह सोचने पर बाध्य कर गई
कि अब तो बदलाव की जरूरत है
नई सोच की और त्योहार के मायने समझने की भी
त्योहार " फील गुड" कराने के लिए है
नई उर्जा भरने के लिए
एक - दूसरे को पास लाने के लिए
खुशियों आदान - प्रदान करने के लिए
न कि अपव्यय करने के लिए
दिए की रोशनी जले ,लेकिन महीने भर चूल्हा भी जले
अमीर को कुछ फर्क न पडता हो
पर औरों को तो पडता ही है
इसलिए दिवाली मनाए
खूब मनाए और सोच- समझ कर मनाए
दूसरों की देखा देखी नहीं
अपनी हैसियत अनुसार मनाए

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