Thursday, 24 May 2018

हर बचपन की एक कहानी

हर बचपन की एक कहानी होती है
राजा हो या भिखारी सबकी एक जिंदगानी होती है
कोई खेले बार्बी डाँल से
कोई चिथड़े वाली गुड़िया से
कोई बजाए डफली
तो कोई चिमटे से थाली
कोई खाए सूखी रोटी
तो कोई बरगर /मैगी
हर खेल होती है मस्तानी
गली मे हो या मैदान
सबकी रौनक न्यारी
सब चिंता से दूर
बचपन होती है हमारी
पापा की डाट , माँ की झिड़की
दिन भर की भटकन
दोस्तों के साथ मस्ती
फिर प्यारी सी नींद
माँ की आँचल की छाया
इसलिए तो बचपन लगता प्यारा
जो लौट के न आता दोबारा
बस यादों मे रह जाता
बचपन की वह मस्ती
कर जाती मन मे हलचल
हम लौट जाते पीछे
याद कर खुश हो लेते
पर वापस न आता
हमारा बचपन प्यारा

No comments:

Post a Comment