हर बचपन की एक कहानी होती है
राजा हो या भिखारी सबकी एक जिंदगानी होती है
कोई खेले बार्बी डाँल से
कोई चिथड़े वाली गुड़िया से
कोई बजाए डफली
तो कोई चिमटे से थाली
कोई खाए सूखी रोटी
तो कोई बरगर /मैगी
हर खेल होती है मस्तानी
गली मे हो या मैदान
सबकी रौनक न्यारी
सब चिंता से दूर
बचपन होती है हमारी
पापा की डाट , माँ की झिड़की
दिन भर की भटकन
दोस्तों के साथ मस्ती
फिर प्यारी सी नींद
माँ की आँचल की छाया
इसलिए तो बचपन लगता प्यारा
जो लौट के न आता दोबारा
बस यादों मे रह जाता
बचपन की वह मस्ती
कर जाती मन मे हलचल
हम लौट जाते पीछे
याद कर खुश हो लेते
पर वापस न आता
हमारा बचपन प्यारा
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Thursday, 24 May 2018
हर बचपन की एक कहानी
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