Friday, 13 July 2018

मैं भी पढ़ना चाहती हूँ

मैं पढ़ना चाहती हूँ
उड़ना चाहती हूँ
मुझे घर की चारदिवारी नहीं भाती
रसोई बनाने में मन नहीं लगता
बरतन -कपडों की धुलाई
घर की साफ -सफाई
यह मेरे ही जिम्मे क्यो  ???
मैं तो बहुत बड़ा बनना चाहती हूँ
सारी दूनिया को दिखाना चाहती हूँ
अपना परचम फहराना चाहती हूँ
अपना नाम बनाना चाहती हूँ
पर इसका मौका कब मिलेगा??
जब अवसर ही न मिले
मुझे अवसर तो दो
सपनों को साकार करने का
मैं तो वह उड़ान भरूगी
सब देखते रह जाएंगे
तुम्हारा भी नाम रोशन करुंगी
तुम भी गर्व से कहोगी
यह मेरी बेटी है
बस मां तुम साथ दो

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