Monday, 6 August 2018

सच मे हम बडे हो गए

याद आते हैं वह पुराने दिन
तब हम बच्चे हुआ करते थे
काँलेज जाते मुहल्ले और गली के लोगों को देख
मार्डन कपडों मे
हमारा भी जी मचलता
कब इस यूनीफॉर्म से छूटकारा मिलेगा
कानों मे बडे बडे बालियां होगी
बार खुले और लहराते होगे
उंची एड़ी वाली चप्पलें होगी
जीन्स पेंट और टी शर्ट होगी
स्कूटी और बाईक होगी
दोस्तों को पीछे बैठाकर फर्राटे लगाएंगे
जब मन होगा घर पर जाएंगे
यहाँ वहाँ घूमेंगे
मटरगश्ती करेंगे
फिल्म देखेंगे
पर सब रफूचक्कर हो गया
यह धारणा धरी की धरी रह गई
अब तो कोई कुछ नहीं कहता
कोई रोक टोक नहीं
न शिक्षक की न घरवालों की
पर अब हम बडे हो गए
अब तो स्वयं की ही चिंता सता रही है
कहीं हम जमाने मे पीछे न पड़ जाय
अब तो स्वयं किताबों मे माथा खपा रहे हैं
अपना भला बुरा सोच रहे हैं
सच मे हम बडे हो गए हैं

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