Monday, 3 September 2018

जेय्ष्ठ हूँ मैं

ज्येष्ठ हूँ मैं
घर का बड़ा हूँ
अनुभवों का भंडार है मेरे पास
इन आँखों ने दुनिया देखी है
यह केशों मे झिलमिलाती चांदी
यह लड़खड़ाते पैर
ऐसे ही नहीं मिले हैं
बहुत चला हूँ
संघर्ष किया हूँ
तब इस मुकाम पर पहुंचा हूँ
परिवार को पहुंचाया हूँ
आज जहाँ बच्चे खडे हैं
वह मेरी बदौलत
पर शायद उनको इसका भान नहीं
उन्हें आसानी से मिला है
कीमत नहीं है
न मेरी न और किसी की
आज भी वह मेरी ही छत्रछाया मे रह.रहे हैं
मेरे ही बनाए घर मे
फिर भी मेरा कोई मोल नहीं
पर वे तो मेरे लिए अनमोल है
आज भी मैं उनके लिए खडा हूँ
वहीं तो मेरा संसार है
माली हूँ बगिया का
लगाए हुए वृक्ष की देखभाल तो मुझे आजीवन करनी है
वह फले फूले आगे बढे
यही देखकर खुश रहूंगा

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