यह नरसंहार था
बेकसूरों को मारा गया
जलाया गया
आग मे झोका गया
उनके घर और दूकानों को लूटा गया
देश के सरताज सिख समुदाय
जिनकी देशभक्ति का कोई सानी नहीं
उन पर शक
केवल दो हत्यारों जो श्रीमती गांधी के सुरक्षा रक्षक थे
यह सरासर गलत था
उसकी सजा तो मिलनी ही थी
जो नेता इस भीड को शह दे रहे थे
उन्हें बालासाहेब ठाकरे से सीखना था
मुंबई मे सिख बांधव सुरक्षित थे
यहाँ किसी ने उन पर हमला नहीं किया
यह उनका आग्रह था
नेता जनता के प्रतिनिधि होते हैं
जनता को काबू मे करना उनका कर्तव्य
न कि उनको उकसाना
सज्जन कुमार हो या कोई और
जो भी इस नरसंहार के पीछे हैं
सब अपराधी है
सजा तो बहुत पहले मिलनी चाहिये थी
पर इतनी देर लगी
देर आए दुरूस्त आए
उनके घावों पर कुछ तो मरहम लगेगा
1984 हो या फिर गोथरा हो या मुजफ्फरपुर
दोषी को छोड़ना नहीं है
माफ भी नहीं करना है
जान बूझकर किया कृत्य माफी लायक नहीं
नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की थी
पर तब तो सब शांत थे
यह हमारे देश की विडंबना है
कोई एक या दो व्यक्ति के अपराध की सजा
उसकी पूरी कौम या जाति को दी जाती है
जबकि उनका दूर दूर तक वास्ता नहीं
सब शक के घेरे मे
बेकाबू भीड़ को न्याय करने का अधिकार मिल जाता है
और उसका दंश सालोसाल चलता रहता है
रातोंरात पड़ोसी और दोस्त दूश्मन बन जाता है
ऐसे कृत्य को सराहना नहीं
निंदा करना है
मिलकर बहिष्कार करना है
आदमी जो करता है
आदमी जो कहता है
वो सदाए जिन्दगी भर पीछा करती हैं
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Tuesday, 18 December 2018
1984 का नरसंहार
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