Sunday, 2 June 2019

तकिया

तकिया तू है कितना अजीज
मेरे एकांत का साथी
जब नीरव और अंधेरी रात हो
जब सर तुझ पर रख चैन
जब उदास हो मन
जार जार रोने को करे
तब सबसे छुपाकर मेरे आंसू की टपटप टपकती बूंदे
अपने में समेट लेता
जब मन क्रोध में हो
तुझ पर जी भर गुस्सा निकाल लिया
जब अकेलापन लगे
तब साथ में चिपका कर सो लिए
जब खुशी महसूस हुई
तब तुझे सीने से लगा लिया
खेलने का मन हुआ
तुझे उछाल लिया
माँ ,दोस्त ,साथी हर रूप में
हल्की फुल्की भी है
मन को भी हल्का करती है
रूदन को छिपाती है
तुझसे ज्यादा भरोसे का साथी कौन होगा

No comments:

Post a Comment