Monday, 1 July 2019

शराब - अमृत या जहर

शराब तुम क्या हो
अमृत या जहर
तुम्हे पीने वाला जन्नत की सैर करते करते
नाला - गटर में जा गिरता है
रोता है
हंसता है
बडबडाता है
स्वयं का आपा खो बैठता है
उसे होश ही नहीं
सारी शर्म - हया  तुम्हारे हवाले
पीए तो बल्ले बल्ले
न पीए तो बेचैन

परिणाम तो भयंकर
घर- परिवार बर्बाद
दुर्घटना कर दूसरों को भी बर्बाद
उस पर तुर्रा यह
कोई उसे शराबी कहे
यह उसे गंवारा नहीं

समुद्र मंथन से निकला यह
पृथ्वी का अभिशाप
सोचने समझने की शक्ति नष्ट करने वाला यह
         जहर
सांप के जहर से भी विषैला
सारे समाज को धीरे-धीरे
अपनी गिरफ्त में ले रहा
इस जहरीले जहर को
पूरी तरह से पाबंदी लगानी है
यह मखमल पर टाट का पैबंद है
अगर इस पर नकेल न कसी गई
तब विकास नहीं
गर्त में चले जाएंगे
इस विनाशकारी से सबको बचाना ही होगा
प्रशासन कठोर से कठोर कदम उठाए

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