जो चला नहीं
जिसके पैरों में छाले पडे नहीं
जो घर से बाहर निकला नहीं
सूरज की तपती गर्मी को महसूस किया नहीं
जो बैठा रहा एयरकंडीशन में
महसूस करता रहा
ठंडा ठंडा कूल कूल
लू के थपेडों को जिसने झेला ही नहीं
बस पंखों की हवा खाता रहा
मुसीबत को जिसने देखा नहीं
हर समस्या को देख घबराया
सुख के आसमान तले बैठा रहा
दुखों से वास्ता कभी पडा नहीं
ऑखों में ऑसू जिसके छलके कभी नहीं
वह जीवन से कोसों दूर रहा
जीवित भी निर्जीव रहा
अनुभव से अंजान रहा
नित नई चुनौतियां आती है
जीवन को साकार बनाती है
हर पल नया आकार देती है
कुछ कर गुजरने को मजबूर करती हैं
जीवन को मजबूत बनाती है
फौलादी सीने में नया जोश निर्माण करती है
ये झंझावत ही जीवन में झंडा फहराते है
मानव को मानव से परिचित करवाते हैं
पलायन नहीं नैराश्य नहीं
जीवन को आशावादी बनाते हैं
जीवन की लंबी पाठशाला में जीना सिखाते हैं
ये वे गुरु है
जो हर पल साथ रहते हैं
पाठ पढाते जाते हैं
नित नये नये रूप इनके
हर रूप में छिपा जीवन का राग
राग और रंग से भरा जीवन
जीने लायक बनाते हैं
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Sunday, 6 October 2019
जो चला नहीं
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