Sunday, 20 October 2019

इंसान बनना सबके बस की बात नहीं

वह बहुत आकर्षक था
पौरूष से भरपूर
सुन्दर देहयष्टि
मनभावन व्यक्तित्व
हाथी सी मदमस्त चाल
वाणी में शेर सी दहाड़
मान और सम्मान भी
नाम और पैसा भी
ऐश्वर्य के संसाधन
क्या कुछ नहीं था
फिर भी रास नहीं आया
उसका कारण यह था
उसके पास एक छोटा सा दिल नहीं था
जो धडकता हो
भावना नहीं थी
जो मचलती हो
आग नहीं थी
जो धधकती हो
तूफान नहीं था
जो बवंडर मचाती हो
वह तो किसी मूर्तिकार की सुंदर रचना है
जो मूर्ति की तरह है
कोई अभिव्यक्ति नहीं
अपने ही घमंड में चूर
जो झुकना नहीं जानती
अकड में खड़ी है
उसकी दूर से पूजा तो कर लेंगे
पर उसके करीब जाना गंवारा नहीं
उस हाड मांस के शरीर का क्या करें
जिसमें जज्बात ही नहीं
ऐसा व्यक्ति अकेला ही रहेगा
इस दुनिया के मेले में
उसका सहभागी कोई नहीं बनेगा
बस वह अपने आप में डूबे और इतराए
वह पत्थर दिल पत्थर की मूरत ही बना रहे
इंसान होना सबके बस की बात नहीं है

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