Wednesday, 29 January 2020

दुश्मनी भी रिश्ता

वह दुश्मन था
पुरानी दुश्मनी थी
पता नहीं कितनी पुश्तैनी
बातचीत क्या
देखने की भी इजाजत नहीं
कारण क्या
वह पता नहीं
बचपन से बस सिखाया गया
पडोसी थे
कभी एक ही घर होगा
एक ही परिवार होगा
एक ही खानदान होगा
अब दीवार है
नया शहर था
कोई परिचित नहीं
परेशानी अलग
बिना किसी जानकारी के
नयी नौकरी
कहाँ वह छोटे शहर वाला माहौल
कहाँ यह महानगर
एक दिन देर हो गई
रात और  सुनसान सडक
अचानक कुछ शोहदे साथ चलने लगे
डर लगा
तभी एक गाडी पास आ रूकी
आ जाओ अंदर
देखा वही पडोसी का बेटा
शायद इसी शहर में रहता था
जान में जान आई
दुश्मनी याद न रही
कोई परिचित तो है अपना
इन अंजान लोगों का क्या ठिकाना
लगा दुश्मनी भी एक रिश्ता है
दुश्मन से भी रिश्ता बन सकता है
जब अंजान शहर हो
बेगाने लोग हो

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