Monday, 20 January 2020

वचनामृत

📖 *श्रीरामकिंकर वचनामृत...*👏
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📕 मानस में सांकेतिक भाषा आती है कि हनुमानजी सीताजी की खोज में समुद्र के ऊपर से जा रहे हैं, तो मानो देहाभिमान से ऊपर उठकर जा रहे हैं। समुद्र है देहाभिमान। समुद्र ने मैनाक को उत्साहित किया कि हनुमानजी तुम्हारे मित्र के पुत्र हैं, तुम ऊपर उठो और इन्हें निमंत्रण दो। मानो समुद्र की यह चुनौती थी कि आप मुझे बिना छुए ऊपर-ही-ऊुपर चले जा रहे हैं, तो इसमें क्या विशेषता, जरा नीचे उतर कर आइये, तब तो आपकी विशेषता की परीक्षा होगी। मैनाक स्वर्ण का पर्वत 🌋था। उसने कहा - मैं तुम्हारे पिता का मित्र हूँ। उसने हनुमानजी को आमन्त्रित किया। परन्तु हनुमानजी ने उस निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। इसके माध्यम से हनुमानजी जिस सत्य को बताना चाहते थे, वह यह है कि साधक को अनावश्यक चुनौतियों को स्वीकार करने की व्यग्रता नहीं दिखानी चाहिए। साधना का पथ बड़ा जटिल है। यदि कोई साधक पग-पग पर बुराइयों को चुनौती देता चले, तो वह कहीं भी उलझ सकता है। और चुनौती से हमेशा भागने की चेष्टा करे, तो भी वह समस्याओं को पार नहीं कर सकता। अतः हनुमानजी ने विनम्रता पूर्वक क्षमा मांग ली और आगे बढ़ गये।
       समुद्र को हँसी आई -- आखिरकार भाग खड़े हुए, मुझे छुने का साहस नहीं हुआ। रामायण की बड़ी सांकेतिक भाषा है। हनुमानजी ने लंका को जलाने के बाद पहला काम पहला काम क्या किया ? वे सीधे समुद्र में कूद पड़े --
       मित्र, तुमने निमंत्रण दिया था, अब मैं आ गया। इसमें एक संकेत था। समुद्र कह सकता था -- उस दिन निमंत्रण नहीं स्वीकार किया और आज अनिमंत्रित ही आ गये ? हनुमानजी का संकेत था कि जब तक मैं साधना के पथ पर चल रहा था, तब तक ऊपर से चले जाने में ही कल्याण था, पर अब तो माँ की कृपा से कृतकृत्य होकर आ गया हूँ। अतः अब तुम्हारी चुनौती स्वीकार करने में कोई भय नहीं है। हनुमानजी वस्तुतः शंकरावतार हैं, तो भी जब उन्हें माँ ने आशीर्वाद दे दिया और उसके बाद उन्होंने प्रवृति को जलाकर भस्म कर दिया, तभी उन्होंने समुद्र में प्रवेश किया।
👏🏻 #सुविचार ---

      🌊 जय गुरुदेव जय सियाराम 🙏

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