Thursday, 9 January 2020

मानव और मोगरा

आज सुबह की धूप
बहुत सौंधी सौंधी
बेंच पर बैठे बैठे कुछ सोच रही थी
तभी लगा
कहीं से खुशबू आ रही है
बगल में ही दो कदम पर मोगरे का पौधा था
दो - तीन फूल खिले हुए थे
शुभ्र सफेद
सूर्य का प्रकाश पड रहा था
जो उन्हें चमकीला भी बना रहा था
मानों मोती हो
वे अपनी ही धुन में मुस्करा रहे थे
आसपास बडे बडे वृक्ष खडे थे
कहीं गुलमोहर तो कहीं चंपा
कुछ लताएँ भी थी
उस छोटे से मोगरे को कोई फर्क नहीं
इस बात का भी नहीं
कहाँ यह कहाँ वह
बस वह तो अपना सौन्दर्य
अपनी खुशबू
बिखेर रहा था
किसी से स्पर्धा नहीं
किसी से ईष्या और द्वेष नहीं
जो भी है
जैसा भी है
स्वयं में
खुश और संतुष्ट
अपनी जमीन से जुड़ा हुआ
सूर्य और हवा की कृपा
हौले हौले झूल रहा
मुस्कान बिखेर रहा
स्वयं भी प्रसन्न
औरों को भी प्रसन्नता दे रहा
छोटा सा जीवन
भरपूर जीना
उमंग और उत्साह से लबरेज
यह है मोगरे का फूल
बहुत कुछ कह जाता
संदेश दे जाता
जीवन का मर्म समझा जाता
वह तो कह रहा
सुनना और समझना
यह तो मानव को है

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