Sunday, 5 April 2020

जान तो प्यारी है

बंद तो है घर में
दरवाजे बंद है
मन नहीं
वह तो अपनी रफ्तार में चल रहा है
क्या हो रहा है
क्या होगा
सोचता चला जा रहा है
न जाने कितने विचार
जब करने को कुछ नहीं
तब सोचने को बहुत कुछ
कभी काम से बेहाल
आज काम बिना बेहाल
व्यर्थ बैठ रहना मनुष्य की फितरत नहीं
घर में बंद उसकी हालत कैदी से कम नहीं
जान का सवाल है
तभी वह मजबूर है
ऐसी मजबूरी का वह आदी नहीं
सामर्थ्यवान है
बालू से भी तेल निकाल सकता है
पत्थर मे भी फूल उगा सकता है
चट्टान को तोड़ सकता है
जुझारू जो है
प्रकृति को भी अपने वश में रखने का माद्दा
वह महामानव है
फिर भी इस महामारी के आगे लाचार है
डर कर घर में बैठा है
सांसों को संभालने में लगा है
क्योंकि जो भी हो
जीवन तो सबसे ज्यादा प्यारा है

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