Monday, 8 June 2020

डर का साया

आज जिंदगी कितनी डरी हुई है
लगता है बीमारी से हाथ जोड़ भीख मांग रही है
घर से बाहर निकलना तो चाह रही है
पर साथ में डरी हुई  भी है
पता नहीं बीमारी किस रूप में आ जाएं
अपने साथ इसे भी घर ले जाएं
हर व्यक्ति शक के घेरे में
हाथ मिलाने से डर लगता है
अपनों के करीब आने से भी भयभीत
माॅल में जाएंगे
दफ्तर में जाना है
कुछ जरूरी काम भी करना है
सब कुछ संभल कर
दिल और दिमाग पर करोना का खौफनाक साया
फल और सब्जी से भी डर
सामान लाने वाले से भी डर
ईश्वर के दरबार में भी डर
लिफ्ट से भी डर
पूरा डरा हुआ
डर में जीता हुआ
कब खुलकर सांस लेगा
कह खुलकर मुस्कराएगा
निकले है घर से
पर वह भी डरते डरते
जिंदगी कब इससे मुक्त होगी
कब खिलखिलाएगी
यह तो प्रश्न चिन्ह
पर आशा है
विश्वास है
जिंदगी फिर वैसे ही खिलखिलाएगी
मन भर मुस्कराएगी
न मास्क न दस्ताने
बिना रोकटोक फिर गले मिलेगी
बतियाएगी , टहलेगी
चर्चा करेंगी , नोक झोंक करेगी
बिना किसी शर्त के साथ
अपनी मर्जी से जीएगी

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