जीवन जीने की आशा
अपार जीजिविषा
गजब का उत्साह
असीमित इच्छा
जब देखने को मिले
वह भी साक्षात
तब क्यों न हो मन बाग बाग
कहीं दूर की बात नहीं
है अपने घर की ही
नाईटी फट गयी
फेंकने को जा ही रही थी
अचानक किसी की आवाज सुन रूक गई
मत फेंकना
काम आएगा
बहू को बच्चा होगा तो गोदडी बनाने के
काटन का कपड़ा कहाँ मिलता है
सोचने लगी तो चेहरे पर मुस्कान आ गई
बहू मेरी और चिंता इनको
अपने बच्चों को तो पाला
अब बच्चों के बच्चों के लिए भी करना
इस बुढ़िया का उठना बैठना मुश्किल
पर जज्बा तो देखो
तभी तो इस उम्र में भी चल फिर रही है
हम तो थक गये
अभी से बुढापे ने दस्तक दे दी है
इनको देखों
एक पैर कब्र में लटकी है
फिर भी इच्छा बलवती है
इसलिए तो जीवन इनको नीरस नहीं लगता
मन तो कहता है
अम्मा तुम जीओ सौ साल
क्योंकि तुम हो तो
मुझे कोई चिंता नहीं
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