मेरा अपना अस्तित्व
प्रश्नचिन्ह है यह
मैं केवल मैं नहीं
सबमें समाहित हूँ
बेटी हूँ
बहन हूँ
पत्नी हूँ
माँ हूँ
बाद में मैं , मैं हूँ
मेरा स्वाभिमान
मेरा व्यक्तित्व
मेरा अस्तित्व
इन सबसे हैं
मैं अपना कैसे सोचूं
इतनी स्वार्थी कैसे हो जाऊं
इनकी खुशी ही में मेरी खुशी
जब पिताजी हंसते हैं मेरी मूर्खता पर
माँ मुझे नादान ही समझती है अब तक
भाई हमेशा लडने पर ही उतारू
मजाक करता है
तब उसके चेहरे पर की मुस्कान
पति तो मीन मेख निकालने पर ही उतारू
कुछ कहने को बेताब
बेटा बेटी तो एक कदम आगे
आपको तो कुछ समझ नहीं आता
बेवकूफ हो आप
किसी लायक नहीं
यह सब तो है
साथ में एक सत्य यह भी है
इन सबको मेरी फिक्र है
मेरे बिना इनका काम नहीं चलने वाला
स्वीकार भले न करें
मुझे भी कभी बेवकूफ
कभी नादान
कभी बेकाम
कभी लडने झगड़ना
यह सबका आनंद भाता है
अकेले का असतित्व
क्या करना है उसे सिद्ध कर
मैं औरत जरूर हूँ
वह तो जन्मजात है
बेटी , बहन , पत्नी और माँ
इस औरत से कही ऊपर है
मेरा अस्तित्व तो इनमें ही समाया है
इनसे ही तो मैं , मैं हूँ
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