चारों ओर राम की जय जय कार
लखन जी तो साथ में हमेशा
कहीं छूटे तो भरत
चारों भाई एक ही पिता की संतान
लगभग हम उम्र
शिक्षा दीक्षा भी साथ में
अधिकार तो सभी का समान
क्या भरत की इच्छा नहीं होगी
राजा बनने की
सपने तो हर कोई देखता है
पर माँ ने सब ध्वस्त कर दिया
राज्य मांगा तो मांगा
चौदह वर्ष का वनवास भी
क्यों क्या महारानी कैकयी डर गई थी
राम की लोकप्रियता से
वह तो क्षत्राणी थीं
महाराज दशरथ के साथ देवासुर संग्राम में भाग लिया था
उसी वीर नारी के पुत्र थे भरत
वीरता तो विरासत में मिली थी
पिता की मृत्यु का कारण भरत बने
राम , सीता और लक्ष्मण के वनवास का कारण भरत बने
उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा था
अगर वह राज्य स्वीकारते
तब महारानी कैकयी की तरह इतिहास कभी उन्हें माफ नहीं करता
माँ पर तो कलंक लग ही चुका था
प्रजा उन्हें कैसे राजा के रूप में स्वीकारती
आज तो अच्छे भाई के रूप में उनकी दुहाई दी जाती है
राजा बनते तब वह भी न होता
उनके सामने एक ही विकल्प बचा था
राम का खडाऊं सिंहासन पर रख सेवा करना
संन्यासियो जैसा जीवन बिताना
वह आहत हो चुके थे
इस कलंक से उन्होंने अपने आप को उबारा
महारानी कैकयी की छवि को सुधारने का प्रयास किया
वह भाई तो थे पर एक पुत्र भी थे
तभी तो गुप्त जी ने साकेत में राम के मुख से कहलवाया
धन्य धन्य वह एक लाल की माई
जिस जननी ने जना भरत सम भाई
भरत जैसे बेटे को जन्म देने वाली माता कुमाता नहीं हो सकतीं
यह भरत ही कर सकते थे
स्वयं को और अपनी माँ को भी इतिहास के पन्नों पर आदरणीय दर्जा दिलाया
आज भी कैकयी की अपेक्षा लोग दोष मंथरा को देते हैं
यह वही भरत थे जो द्रोणगिरी पर्वत से संजीवनी लेकर जाते समय हनुमानजी को बिना फर के बाण द्वारा गिराया था ।पर्वत को आकाश में रोक रखा था
फिर हनुमान जी को अपने बाण पर सवार कर लंका भी पहुंचा दिया
एक भावी और योग्य शासक केवल आदर्श भाई बन कर रह गया
उसकी वीरता और शूरता का कहीं उल्लेख नहीं
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