अहम और वहम
अ और व को निकाल दे
बच जाता है हम
हम को न अहम की जरूरत
न वहम की जरूरत
वह हम ही बना रहे
क्योंकि दोनों में से एक भी साथ जुड़ा
तब विनाशकारी
अहम आ जाएं तो कहीं का नहीं छोड़ता
बडे बडे लोगों का खेल इसने बिगाडा है
मिट्टी में मिलाया है
मैं ही सर्वश्रेष्ठ
मैं ही सर्वोपरि
मेरे जैसा और कोई नहीं
फिर वह भक्ति पर हो
शक्ति पर हो
संपत्ति पर हो
सब खत्म
वहम आ जाएं
तब अपने भी पराये
सब में दोष ही दोष
अच्छा कुछ भी नहीं दिखना
इसी वहम ने परिवार तोड़े हैं
अपनों से अलगाव करवाया है
यह दिखता नहीं पर जानलेवा
विश्वास पर तो दुनिया टिकी है
वहम तो विश्वास को ही खत्म कर डालता है
मुझे किसी की जरूरत नहीं
यह तो हुआ अहम
सबको मेरी जरूरत
यह हुआ वहम
तब केवल हम रहने दे
हम यानि हम सब
एक - दूसरे के सहारे ही संसार चलता है
अकेला तो चना भी भाड नहीं झोंकता
तब हमारी क्या बिसात
कब किसकी जरूरत पड जाएं
भगवान राम को भी बंदरों का सहारा लेना पडा था
महाबलशाली रावण को उसके अहम ने मारा
अमरता का वरदान
नाभि में अमृत कुंड
और विभिषण से बैर
मंहगा पड गया
शायद भाई साथ होता तो लंकेश मरते नहीं
वनवासी समझ रहा था दशरथनंदन को
साधारण बालक
पर उन्हीं दो बालकों ने उनकी लंका को ध्वस्त कर दिया
एक वानर ने लंका ही जला डाली
तब मैं को छोड़ हम में जीना है
व्यक्तिवादी से समष्टिवादी बने
तभी जीवन की सार्थकता
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Sunday, 15 November 2020
अहम और वहम
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