सुबह सुबह कबूतर की गुटरगूगुटरगू
चीडियो की ची ची ची
कौए की कांव कांव
नींद हराम कर जाती है
इतवार खराब कर जाती है
मन करता है सोने का
ये खिडकी पर आ चिल्ल - पो कर जाती है
दोष इनका क्या दू
शायद इन्हें पता नहीं
आज छुट्टी का दिन है
आराम का दिन है
एक ही दिन तो फुर्सत के
और दिन तो भागम-भाग के
यही सुबह तो अपनी है
इस पर भी इनका डाका
बोले जा रहे हैं
गुटरगू करते जा रहे हैं
जानते नहीं
हम इनके जैसे स्वतंत्र नहीं
बंधनो मे जकडे हुए
सोना - जागना सबमें
आज तो बख्श दो हे प्राणियों
पता नहीं
आज इतवार है
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Sunday, 20 December 2020
आज इतवार है
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