Sunday, 20 December 2020

आज इतवार है

सुबह सुबह कबूतर की गुटरगूगुटरगू
चीडियो की ची ची ची
कौए की कांव कांव
नींद हराम कर जाती है
इतवार खराब कर जाती है
मन करता है सोने का
ये खिडकी पर आ चिल्ल - पो कर जाती है
दोष इनका क्या दू
शायद इन्हें पता नहीं
आज छुट्टी का दिन है
आराम का दिन है
एक ही दिन तो फुर्सत के
और दिन तो भागम-भाग के
यही सुबह तो अपनी है
इस पर भी इनका डाका
बोले जा रहे हैं
गुटरगू करते जा रहे हैं
जानते नहीं
हम इनके जैसे स्वतंत्र नहीं
बंधनो मे जकडे हुए
सोना - जागना सबमें
आज तो बख्श दो हे प्राणियों
पता नहीं
आज इतवार है

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