बहुत गहरा है तू सागर
तेरी थाह किसी को नहीं
मुझे लगता है
तुझसे ज्यादा गहरा है हमारा मन
तूने न जाने क्या-क्या छिपाए हैं अपने में
सदियों का गवाह है तू
विनाश का भी निर्माण का भी
हीरे , माणिक , खनिज के साथ-साथ
बडे - बडे महलों को भी
जहाजों को और न जाने किनको
तब भी ऊपर से शांत और गहरा
इस मन की बात करें
इस मन में एक पूरी जिंदगी समाई है
न जाने क्या - क्या छुपाया है
कितना बर्दाश्त किया है
पर ऊफ तक नहीं की
ऊपर हंसी और मन में रूदन
कोई जान न पाया हमारा अंतर्मन
तूने सदियाँ देखी है
तब हमने भी दशकों देखे हैं
तू तो निर्जीव है
हम तो सजीव है
तुझे क्रोध आ गया तो सुनामी आ जाएंगी
हमें तो क्रोध को
गम और पीडा को
मान - अपमान को चुपचाप पीना है
सहन करना है
यह दिल न जाने कितनी बार टूटा है
न जाने कितनी बार फिर जोड़ा है
हमारे भी इस अथाह मन की थाह लेना कोई खिलवाड़ नहीं ।
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