Wednesday, 20 January 2021

मेरे अपने कहने के लिए

मैं अपना गम भूल गई
लोगों को खुश रखने के चक्कर में
और लोग भी कौन
मेरे अपने मेरे हमदर्द
ऑख के ऑसू पीती रही
भरे गम में मुस्कराती रही
बातें करती रही
बातें सुनती रही
मैंने सोचा
यही तो वे लोग हैं
जो मेरे गम में शरीक है
यह पता नहीं था
वे अपने में मशगूल हैं
दिखावा और शिष्टाचार का लबादा ओढे
ढोंग करने में व्यस्त है
यह मालूम था
सबकी अपनी अलग - अलग दुनिया
सबके अपनी अलग-अलग समस्या
इसलिए तो कभी कोई
शिकवा - शिकायत न की
उन लोगों की सलामती के लिए हमेशा ईश्वर से दुआ की
अपनों का दुख भी अपना होता है
उन पर कोई आंच न आए
यह मन सोचा करता है
अपनों ने तो यह बात न समझी
मेरी चुप्पी को कमजोरी समझी
हर बार शब्दों के बाण चलाते रहें
मुझे नीचा दिखाते रहे
हर बार यह सोचा
जाने दो , छोडो
अपने हैं तभी तो
बेगाने तो न झांकने आएंगे
पर यह क्या ये लोग तो
मुझ पर ही तोहमत लगाने लगें
मेरी जिंदगी चलाने लगें
इस तरह रहमत दिखाने लगें
जैसे ये खुदा हो
एहसान का एहसास दिलाने लगें
अरे एहसान की छोड़ दो
तुमने जितना किया है
एवज में हमने बहुत कुछ किया है
हिसाब - किताब ही करना है न
तब बराबर करों
एक - दो दिन का नहीं
बरसों का करों
हम तुम पर भारी ही रहेंगे
तुम यह बात भले न मानों
तनिक समय निकालकर गंभीरता से सोचो
तुमने क्या किया
हमने क्या किया
इतना लाचार मत बनाओ
हमने भी जहां देखा है
तुमने भी जहां देखा है
फर्क इतना है
तुम बोलते हो
हमारी जबान डर के मारे बंद रहती है
वह भी अपने है इस कारण
नहीं तो गैरो को आईना दिखाने का माद्दा हम भी रखते हैं
सब खुश रहें मेरे अपने
यही आज भी चाहत रखते हैं

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