बिन मौसम की बरसात भी कभी-कभी अच्छी लगती है
अंजाने ही आकर भींगो जाती है
सतर्क कर जाती है
कहती है
मैं कभी भी आ सकती हूँ
तुम अपना इंतजाम कर रखो
छाता - रेनकोट हमेशा साथ रखो
फिर मुझे दोष मत देना
मैं तुमको भिगो गई
कोसना मत
ऐसे ही तो मुसीबत कभी भी आ सकती है
सतर्कता और सावधानी जरूरी है
वह बरखा की तरह बोल कर नहीं आती
न जाने क्या कर जाती है
हम आवाक सा ताकते रह जाते हैं
सोचते हैं पहले से पता होता तो
ये सब पता नहीं होता
अचानक आते और जाते हैं
बरखा भी कुछ भी रखो
छाता या रेनकोट
तब भी भीग ही जाते हैं
पर थोडा तो राहत हो जाता है
हमारा सर बच जाता है
यही हाल तो मुसीबत का भी है
हम सोचते रह जाते हैं
वह अपना काम कर जाती है
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