Saturday, 2 January 2021

अपनी औकात समझ मे आ गई

आज की रात बडी रंगीन
जोश और जश्न की रात
जश्ने-आज़ादी की रात
इसको कल बिदा होना है
बिदाई भी शानदार हो
दिया है बहुत कुछ
जीने के मायने समझाएं
जो भूल गए थे
अपनों से दूर हो गए थे
टेलीविजन और मोबाइल में खो गए थे
घर को सराय समझ बैठे थे
हाथ से काम करना भूल गए थे
घर का भोजन के स्वाद पर भारी था होटल का सुस्वाद
गाँव से भागे थे शहर की ओर
विपत्ति में फिर कर लिया गया उसी का रूख
नमस्ते करने में आती थी शर्म
अब हाय करने से हो गए दूर
फिर जोड़ लिया हाथ
काम बिना कुछ नहीं
फिजुलखर्ची तो भारी पडी
अपनी औकात समझ मे आ गई
दाल - रोटी भी भा गई
जो विलग विलग थे एक ही घर में
फिर इकठ्ठा हो लिए
घर , घर ही होता है
परिवार , परिवार ही होता है
यह बहुत दिनों बाद समझ में आया
पैसा जोड़कर रखना है
नहीं तो मरना है
भूखे नहीं तो बीमारी से
हारी - बीमारी और दवाई
कब कहाँ से आ टपके
सब ध्वस्त कर जाएं
हम कुछ नहीं प्रकृति के हाथ के खिलौने हैं
उस खिलौने को संभालने की जरूरत है
यह जिम्मेदारी भी हमारी है
कोई बचा नहीं
सब लपेटे में आए
किसी न किसी तरह
अपनी औकात समझ मे आ गई
क्या बडा क्या छोटा
क्या अमीर क्या गरीब
क्या धर्म क्या जाति
क्या विकास क्या पिछड़ा
हर देश की लगभग यही कहानी
अमेरिका हो या रशिया
इटली हो या चाइना
सब आ गएँ जमीं पर
सिट्टी पिट्टी गुल
पहरा लग गया लाॅकडाउन का
बिदाई देना है
अब तो इस रात को जल्दी से जाने दो
बिदाई देनी ही है तब शानदार ही हो
गुरु जो है सिखा गया
गुरु दक्षिणा तो देनी है
जोश और खरोश और जिंदादिली के साथ

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