Wednesday, 13 January 2021

मैं पतंग

मैं ऊब गई हूँ
किसी के हाथ से उडते उडते
मेरी डोर किसी और के हाथ
वह जैसा चाहे वैसा उडाए
जहाँ चाहे वहाँ
जिस दिशा में चाहे वहाँ
किसी के हाथ की कठपुतली
मैं तो पतंग हूँ
उडना मेरा स्वभाव है
कोई जरा से पेंग दे
और मेरी उडान का पूरा क्रेडिट ले
अब मैं यह नहीं चाहती
मेरी अपनी शख्सियत
मेरी अपनी पहचान
मेरी अपनी मेहनत
मेरी अपनी काबिलियत
किसी और की मेहरबान नहीं
छोड़ दे मुझे मेरे हाल पर
जाने दे और ऊंचा और ऊंचा
कट जाऊंगी या काटूगी
उडूगी या गिरूगी
यह मेरी जिंदगी

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