दर्द जो छलका है मन में
वह ऑखों में भर आया है
मन भारी भारी
ऑख पानी पानी
लगता है
दर्द बडा गहरा है
आज का नहीं बरसों पहले का
अब जाकर बाहर आया है
छिपा रखा था इसको सबसे
दिल के किसी कोने में
टीस देता रहता था
तब भी ऊफ नहीं होता था
दब दब कर इतना दब गया
अब निकलना मुश्किल
घर बना लिया है अपना मन में
अब वह अपने मन की ही करता है
कितना ही समझाऊ
लेकिन कहाँ सुनता है
अब तो इससे मुक्ति पाना है
जड से निकाल फेंकना है
बहुत सहा अब और न सहना है
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Thursday, 4 February 2021
दर्द जो छलका है
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