Thursday, 4 February 2021

दर्द जो छलका है

दर्द जो छलका है मन में
वह ऑखों में भर आया है
मन  भारी भारी
ऑख पानी पानी
लगता है
दर्द बडा गहरा है
आज का नहीं बरसों पहले का
अब जाकर बाहर आया है
छिपा रखा था इसको सबसे
दिल के किसी कोने में
टीस देता रहता था
तब भी ऊफ नहीं होता था
दब दब कर इतना दब गया
अब निकलना मुश्किल
घर बना लिया है अपना मन में
अब वह अपने मन की ही करता है
कितना ही समझाऊ
लेकिन कहाँ सुनता है
अब तो इससे मुक्ति पाना है
जड से निकाल फेंकना है
बहुत सहा अब और न सहना है

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