Saturday, 27 March 2021

तुम किसके हो

कुछ कसूर नहीं मेरा
फिर भी है सुनना
कभी सोचती
यह किस अपराध की सजा
तुम तो मनमानी करते रहे
पीसती तो मैं रही
तुम अपना कर्तव्य निभाते रहे
समाज को दिखाने के लिए
अपने परिवार के लिए
मुझे अनदेखा करते रहे
मैं कुढती रही
कुछ बोला तो चुप कराते रहे
कर्तव्य निभाना अच्छा है
पर मेरे प्रति भी तो कर्तव्य बनता था
वह तो पूरी संजीदगी से तुमने कभी निभाई नहीं
मैं संपूर्णता चाहती थी
वह तो तुमने अधूरा ही रखा
बंटा रहा तुम्हारा व्यक्तित्व
हर बात सुनी
हर आज्ञा का पालन किया
भले मैं टूटी होगी
पर तुमको टूटने न दिया
ऑखों में ऑसू आए होंगे
उसको भी छिपा रखा
दिल की बात कहना चाहा
वह डर के मारे होंठो पर न आया
तुमने हमेशा चुप कराया
अगर मैं अपने पर आ जाती
तब तो तुम और तुम्हारा यह परिवार बिखर गया होता
आज तक यह समझ  न आया
तुम्हारा परिवार कहाँ है
तुम्हारा घर कहाँ है
सच्चाई क्या है
तुम किसके हो

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