तुम थे मैं थी
साथ - साथ रहना था
वक्त नहीं था
परिस्थितियां भी विपरीत थी
रहना था
साथ - साथ
जिंदगी अलग - अलग रहने पर मजबूर
चार दशक बीत गए
सब कुछ सामान्य सा चलता रहा
सबकी नजरों में
समाज - परिवार की नजरों में
साल में एक - दो बार मिलते रहे
तुम कहीं मैं कहीं
ऐसे जिंदगी कटती रही
तुम्हारा आना होता था कि खुश होऊ
तब तक जाने की तैयारी होती रही
ऑख में कभी ऑसू भी न आए
शायद वह भी इसके आदी हो गए थे
सब कुछ सामान्य सा दिखने वाला
क्या सचमुच सामान्य था
वह जीवन हमने जीया क्या??
एक सामान्य पति - पत्नी की तरह
न लडाई न झगड़ा
न शिकवा न शिकायतें
बस एक - दूसरे की खुशी देखा
नाराजगी जाहिर करने का
अधिकार जताने का मौका ही नहीं
दूर रहना है परेशान हो जाएंगे
इसलिए दुख - दर्द भी छिपाते रहे
असलियत पर परदा ढाकते रहे
तुम भी मनमानी करते रहे
अपनी तरफ से कर्तव्य पूरा करते रहें
जो साथ ही नहीं रहा
वह क्या जाने पत्नी का रूठना
बच्चों का जिदियाना
उम्र से पहले ही सब बडे हो गए
समझदार मैं भी और वे भी हो गए
वक्त बीता
अब हम और तुम फिर साथ - साथ
सब कुछ सामान्य
नहीं शायद
सब कुछ सालता है
बीता समय लौटता नहीं है
तुम्हारे कर्तव्य वान बनने में
हमारी इच्छाओ की बलि चढी है
शरीर और मन दोनों पीडित है
फिर यह कहना
मैं तो वर्तमान में जीता हूँ
तभी खुश रहता हूँ
तुम अतीत को लेकर ढोओ और रोओ
सही भी है
रोया पहले भी है आज भी
ऑसू भी अब अपने आप पोछने की आदत हो गई है
सब ठीक है
कहीं कुछ ठीक नहीं है
मन में दरक है
जिससे अतीत झलकता है
वह दरक अब भरने से रही
जीते तो सब है
कोई रो कर कोई हंसकर
अपना अपना भाग्य
कटती तो रात सबकी है
किसी की चैन की नींद सो कर
किसी की जाग कर
अब तो कुछ ही वक्त बचा है
वह भी कट ही जाएंगा
साथ - साथ
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