Tuesday, 4 May 2021

शीतलता तभी शोभेगी जब ताप हो

चांद की सुंदरता
चांद की शीतलता
सबको भाती
कवि की कल्पना  में  चांद
प्रेमिकाओं की उपमा में  चांद
बच्चों  के प्यारे मामा  चांद
चांद में दाग तब भी उससे प्यार
वह चरखा कातती बुढिया
सब उसके पीछे-पीछे
तारों  के  संग चलता जाता
बारात चली जा रही मानो

वही सूर्य  का प्रकाश
सबको चकाचौंध कर देता
फिर भी  सब प्रतीक्षा रत
कब सुबह  होगी
कब अंधेरा भागेगा
कब लोग  जागेंगे
कब काम  शुरू होगा

एक  जगाता है
सचेत करता है
ताजगी से भरता है
वहीं दूसरा शीतलता  से
एक तीव्र  ज्वलनशील और कर्मठता  का प्रतीक
सबको उससे प्यार
सब उसके जाने की और आने दोनों  की प्रतीक्षा  करते हैं
सलाम  करते हैं उगने पर

बिना कर्म  के  जीवन की सार्थकता  नहीं
कितने भी शीतल हो
सौंदर्य  के धनी हो जाओ
जब तक अपनी आभा न फैलाओ
तब  तक  जीवन का कुछ महत्व नहीं
शीतलता  तभी शोभेगी जब ताप हो ।

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