Thursday, 1 July 2021

पुलिस के प्रति नजरिया

आज अस्पताल में हूँ
घायल पडा हुआ हूँ
तन तो घायल है
मन भी घायल है
मेरा कसूर क्या
यही न कि मैं अपनी ड्यूटी कर रहा था
झगड़ा छुडाने का प्रयास कर रहा था
मैं और मेरा साथी गश्त पर पर थे
सूचना मिली झगड़े की
पब्लिक इकठ्ठी हो तमाशा देख रही थी
हमने बीच बचाव की कोशिश की
दर्शक  कुछ ज्यादा ही उत्तेजित थे
फिर पुलिस के प्रति धारणा
पुलिस ही निरंकुश है
मारती - पीटती है
देखते - देखते एक दल हम पर टूट पडा
लातो  - घूस्सो की बौछार
लाठियां- डंडे बरसने लगे
समझ नहीं आया
क्या करें  ??
असहाय- लाचार पुलिस  स्वयं ही जनता द्वारा पीटी जा रही थी
किसी तरह एक साथी भागा
जाकर थाने में बताने पर फोर्स आई
तब जाकर छुडाया गया
आज मैं जीवन से जूझ रहा हूँ
वर्दी मेरी ताकत है
कम से कम वर्दी का तो सम्मान हो
यह कैसी विडंबना है
आए दिन पुलिस पर हमले
राह चलता राहगीर भी बपौती समझता है
हम जनता के सेवक हैं
उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है
पर वह भी तब संभव
जब हम सुरक्षित हो
हमारा भी परिवार है
हमारे बाल - बच्चे हैं
उनके लिए ही हम काम करते हैं
रात - दिन की ड्यूटी है हमारी
हम हैं तभी लोग चैन की नींद सोते है
हमें शत्रु क्यों समझा जाता है
कानून का पालन कराना हमारा कर्तव्य है
वह हम कैसे करें  ??
पुलिस ही दोषी  नहीं होती हमेशा
अपने भी गिरेबान में लोग झाँके
पुलिस की उपेक्षा न करें
वह रक्षक है
अपने नजरिये को बदले
पुलिस को दोस्त और हमदर्द समझे।

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