अस्सी प्रतिशत अंक
फिर भी मुंह छिपाना
आत्महत्या कर लेना
माता - पिता की बेइज्जती
बच्चों पर तोहमत
यह क्या बात हुई
मार्क्स ही तो है
नहीं आए न सही
कौन सा पहाड़ टूट पडा
रही बात एडमीशन की
तो वह भी कहीं न कहीं मिल जाएंगा
इतनी हाय - तौबा
सब मचा रहे हैं
घर वाले
पडोसी
रिश्ते दार
जान पहचान वाले
एक हमारा जमाना था
अखबार में बोर्ड का रिजल्ट
पेपर में देख लिया
नहीं आया तो नहीं आया
पडोस के चाचा कहते
कोई बात नहीं
बहुत जिंदगी पडी है
अगले साल फिर दे लेना
परीक्षा ही तो है
मुख पर मुस्कान आ जाती
सांत्वना के शब्द मरहम का काम करते
फिर कमर कस अगली परीक्षा के लिए तैयार
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