बात उस समय की है जब मैं केन्द्रीय विद्यालय में पढा रही थी । पहली नौकरी थी और वह भी टेम्परेरी। कुछ अनुभव नहीं था पर वहाँ से कुछ अनुभव मिले जो आज तक याद रहा ।
पहला वाकया
पहला यह कि जब पहली बार बच्चो का पेपर जांचा तो ऐसा कि आधे से ज्यादा फेल।नई थी ही क्लास टीचर आई तो बच्चों ने हो हल्ला किया ।उन्होंने सभी कापियों को इकठ्ठा किया और मुझे लाकर दिया । कहा इतना स्ट्रीक्ट नहीं जरा लीनियन होकर जांचो। बच्चे हैं वह तो मैंने रोक दिया नहीं तो प्रिंसिपल के पास जाने वाले थे ।मैंने घर आकर अपने भाई को यह बात बताई तो उसने कहा कि छात्रों से ही तेरी नौकरी है ।वे खुश तो नौकरी सही सलामत। यह बात मैंने गांठ बांध ली फिर तो अट्ठाईस साल के टीचिंग प्रोफेसन में कहीं कोई शिकायत नहीं आई
दूसरा वहीं का वाकया
पन्द्रह अगस्त था ।झंडा फहराया जा रहा था कि अचानक जोरो की बरसात होने लगी ।,प्रिंसिपल मिस्टर सूद जरा भी टस से मस नहीं तो फिर कोई नहीं ।न छात्र न स्टाफ ।
अगर मिसाल पेश करनी है तो पहले अपने पर बाद में दूसरों पर ।
तीसरा वाकया
जब मैंने इंटरव्यू दिया तब झूठ बोला था कि मेरे पति महाराष्ट्र में ही कार्यरत हैं जबकि वे तो उत्तर प्रदेश पुलिस में थे ।जब पहली सैलरी की बारी आई तो क्लर्क ने बुलाकर कहा कि आपको हाउस एलाउन्स नहीं मिलेगा
क्योंकि आप सरकारी क्वार्टर में रहती है ।मैंने तो यह सोचा ही नहीं था कि झूठ बोलने पर इतना नुकसान। अब क्या करें । रात को नींद नहीं आई बराबर ।सुबह होते ही मैंने निश्चय कर लिया सर को सब सच बता दूंगी ।अगले दिन सुबह ही जाकर मिली और सच बता दिया। सर ने कहा , हमें क्या मतलब कि आप कहाँ रहती है झूठ क्यों बोला ।मैंने कहा कि नौकरी के लिए ।पति उत्तर प्रदेश और मैं यहाँ। लोग हिचकिचाते थे । सर ने कहा कोई बात नहीं आप जहाँ रहती है वहाँ के किराये की रसीद दे देना ।
तब महसूस हुआ सच बोल ही दो ।सब साफ हो जाएंगा ।
चौथा वाकया
मैं लेंग्वेज की टीचर ।छात्र कहते हमको यह हिन्दी और संस्कृत पढकर क्या मिलने वाला ।इससे अच्छा तो कोई फारेन लेंग्वेज पढते तो वह काम आता ।इतिहास पढकर क्या मिलने वाला ।गणित और साइंस ही रहना चाहिए।
शायद उन्हें यह नहीं पता जिस देश का इतिहास नहीं उस देश का भूगोल ही खत्म
इकबाल की पंक्तियाँ
यूनान ,मिस्र, रोम सब मिट गए जहां से
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा।
पांचवा वाकया
दो शिक्षक थे उसी विद्यालय में। दोस्त भी थे ।एक जैन एक राजपूत।
अब जैन साहब शाकाहारी और सिंह साहब ठहरे मांसाहारी।
आपस में बात करते करते इसी खाने पर बहस हो गई और दोनों सीढियों पर ही आपस में उलझ बैठे ।हाथापाई करने लगें ।बच्चों ने छुडाया
अगले दिन दोनों का तबादला दूसरे शहर में
सर का कहना था जो खुद पर काबू नहीं रख सकते वह बच्चों पर क्या रखेंगे ।
No comments:
Post a Comment