दो पक्षी उडते उडते एक - दूसरे से मिले
एक पेड़ की डाल पर बैठे
ऑख से ऑख मिली
इशारों- इशारों में बात होने लगी
पता ही न चला
कब दोनों एक - दूसरे के करीब आ गए
साथ जीने - मरने की कसमें खाने लगें
एक - दूसरे का ख्याल रखने लगें
दोनों अब रोज मिलते लगें
समय साथ - साथ बिताने लगें
दोनों ने निश्चय किया
अब अपना घोंसला बनाएंगे
जो केवल अपना हो
अपना नीड अपना घर
दोनों ने अपना - अपना घर छोड़
एक नया आशियाना बसाया
जिसमें बस अब वे ही दो थे
नहीं कोई दखलअंदाजी न कचकच
बस अपना ही अधिकार अपना ही राज
कुछ समय के बाद परिवार में नए मेहमान का प्रवेश
दोनों बहुत खुश
इस तरह एक के बाद दूसरे का भी
अब चिंता लगी
उनके पालन पोषण का
उनके भविष्य का
दोनों खूब काम करने लगें
जी - जान से लग गए
सुबह बच्चों को छोड़ जाते
देर रात तक घर आते
सारा इंतजाम कर जाते
फिर भी बच्चे तो अकेले ही रह जाते
किसी को बात करने की फुर्सत नहीं
बच्चे भी काबिल निकले
सीख कर किसी दूर देश में निकल गए
ये दोनों फिर भी खुश नहीं
जो चाहा सब है फिर भी
ये अकेले रह गए
जब पंख लग गए हैं तब उडना तो है ही
सो बच्चों ने वही किया
जो एक समय इन्होंने किया था
मायूस क्यों हो
यह तो जीवन चक्र है
एक समय तुमने छोड़ा
एक समय वह छोड़े
अपना - अपना जीवन जीने का हक सबको है
तुमने अपनी जिंदगी जी
वे अपनी
अकेले तो रहना ही है
वह तो नियति है
उसे कैसे टाले।
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