बदला लेने की भावना का त्याग कर दे
सबको माफ कर दे
बदले से कुछ हासिल नहीं होता
सही है भी
सिवाय परेशानियों के
लडाई - झगड़े से
कत्ल - बलवा से
यह भी सच है
हानि दोनों तरफ की
जान - माल की
आज पडोसी देश हमारे लोगों को मारे
हम माफ कर दे
शांति का प्रस्ताव रखें
ऐसा कहाँ संभव है ??
द्रोपदी को क्या मिला
दुःशासन की जंघा का रक्त पान कर
क्या वह आग शांत हो पायी याज्ञसैनी की
अंत में कहती है
रक्त पान उस दिन किया था
गला आज भी जल रहा है
उस मंजर को कोई भी वहाँ उपस्थित कैसे भूलता
सब प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार थे
राजा दुपद्र की बेटी
हस्तिनापुर की कुलवधू
इंद्रप्रस्थ की महारानी
पांच वीर पांडवो की पत्नी
भगवान कृष्ण की सखी
उसको भरे दरबार में घसीट कर लाना
निर्वस्त्र करने का प्रयास
वेश्या की उपाधि
इससे बडा पाप और अन्याय क्या होगा
युद्ध तो निश्चित था
उस दिन तो धृतराष्ट्र अंधे नहीं बल्कि सब अंधे हो चुके थे
शायद वह ही नहीं भगवान कृष्ण भी रोयें होंगे
वह किसी के रक्तपान से कैसे खत्म होता
मन को दिलासा के लिए ठीक है
पर भूल जाए और माफ कर दे
यह तो संभव नहीं।
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