Tuesday, 21 December 2021

गिला -- शिकवा

जिंदगी भर गिला - शिकवा करते रहे
कभी स्वयं से कभी दूसरों से
कभी ईश्वर से कभी भाग्य से
चलता रहा अनवरत ये शिकवा - गिला
कम न हुआ इसका सिलसिला
जिंदगी भी चलती रही
हमारे साथ वह भी सब सुनती रही
अब वह भी कहती है
बस भी करो
छोडो यह सिलसिला
जो कुछ समय शेष है
उसका ले लो मजा
जो मिला वह भी ठीक
जो न मिला वह भी ठीक
जो हुआ वह भी अच्छा
जो न हुआ वह भी अच्छा
एक उम्र पर जब सब जोड- घटाना कर देखो
ऐसा ही नहीं
केवल खोया ही खोया है
बहुत कुछ पाया भी है
तब जो है सो है
खत्म करो यह सिलसिला
छोडो करना
शिकवा - गिला

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