मायका कितना भी अच्छा हो
कितना भी प्यारा हो
कितना भी समृद्ध हो
कितना भी अपनापन हो
तब भी वह अपना नहीं लगता
अपना घर ही घर होता है
कुछ समय के लिए ठीक है
दो - चार दिन चल जाएंगे
पर हमेशा के लिए तो नहीं
अपने घर पर अधिकार
मायके में रहना एहसान
यह अपना नहीं
यह एहसास तो कभी जाता ही नहीं
दूसरे तो हैं ही
बोलने वाले और पूछने वाले की तो बात ही छोड़ दे
हमारा स्वयं का मन भी कहाँ चैन से बैठता है
वह बार-बार सवाल करता है
जताता है
यह तुम्हारा घर नहीं
बाप की बात कुछ और है
वहाँ हक हैं
उनके न रहने पर वह भी खतम
यह किसी एक की बात नहीं
दुनिया का नियम है
तभी कहते हैं न
अपना घर तो घर होता है
सबसे प्यारा होता है
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