Sunday, 23 October 2022

आज तो जी लूँ

क्या शुभ्रता 
क्या रंगत
मन मोहक
सबको आकर्षित करता
आज खिला है
मुस्कान भर  रहा है
बिना यह सोचे 
जिस डाली पर है
वहीं उसे एक दिन गिरा देगा
एक नई कली नए पुष्प का जन्म होगा 
वह उसको गोद में ले दुलराएगा 
हवा भी प्यार लुटाएगी 
जिस तरह यह आज झूम रहा है
वह कल उपेक्षित हो जाएगा 
नियति उसकी यही है
फिर भी मुस्कान से भरा है
आज तो अपना है कल को किसने देखा है
प्रेमी के गजरे की शोभा
भगवान के चरणों में अर्पित 
या मिट्टी में 
जो हो सो हो
आज तो जी लूँ।

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