जमाना था वह
जब मनोरंजन के साधन किताबें थी
चंदा मामा- चंपक पढते पढते कब बडे हो गए
उपन्यास और कहानियां पढने लगे
साहित्य में रूचि लेने लगे
धर्मवीर भारती की साप्ताहिक हिन्दुस्तान
नौटियाल जी की ब्लिटज
टाइम्स ग्रुप की नवभारत टाइम्स
फिल्मी पत्रिका माधुरी और फेमिना
इसी समय साहित्य कारों से परिचय हुआ
गुलशन नन्दा के उपन्यास से शुरू हुआ सफर
मुंशी प्रेमचंद के गोदान पर खत्म हुआ
बहुत सी लेखिकाओं से परिचय हुआ
मन्नू भंडारी ,शिवानी, कृष्णा सोबती ,उषा प्रियंवदा
आधुनिक विचार रखने वाली लेखिकाएं
मन को खूब भाती थी उनकी रचनाएँ
ऐसा लगता था यह हमारी अपनी हो
अस्सी का दशक था
प्रगतिशील विचारधारा का प्रभाव पड रहा था
शिक्षा के द्वार खुल गए थे
नयी नयी कल्पना अपनी उडान भर रही थी
एक तरफ पुरातन सोच दूसरी तरफ नयी
उसमें टकराव हो रहा था
हमारी पीढ़ी उसी की उपज है
अमीन सयानी का रेडियो जयमाला
विविध भारती के गाने और नाटक
रेडियो पर ही सब सुनना
कपिल के छक्के और चौके
धीरे-धीरे टेलीविजन आया
रामायण और महाभारत का भी दौर चला
आज भी हमारी सोच अत्याधुनिक है
क्योंकि हमने मन्नू भंडारी और शिवानी को पढा है
आज मन्नू भंडारी जी का निधन बहुत बडी क्षति है
साहित्य जगत के लिए
उनकी ही रचना पर बनी फिल्म
अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा द्वारा अभिनीत
रजनीगन्धा
भंडारी जी की महक भी रजनीगन्धा जैसे बरकरार रहेंगी
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