फिर भी हमें प्यारा है
पूर्णता की अपेक्षा नहीं
पूर्ण तो हम भी नहीं
कोई और कैसे होगा
सिवाय ईश्वर के
मानव है
कुछ अच्छाई कुछ बुराई
कुछ कमी कुछ कमजोरी
इन्हीं कमजोरियों के साथ जीते हैं
कुछ को सुधार करते हैं
कुछ के साथ चलते हैं
शायद वह बदलता नहीं
हम अभिनेता नहीं हैं
जीवन के रंगमंच पर अभिनय नहीं
जो हैं उसी के साथ जीना है
हमारा अपना व्यक्तित्व है
हमारा अपना नाम है
हमारा अपना वजूद है
हमारी अपनी खासियत है
ऐसा तो नहीं कि अधूरे चांद का कोई सौंदर्य नहीं होता
वह भी प्यारा ही लगता है
चांदनी और प्रकाश तो वह भी फैलाता है
तारों का समूह उसके साथ भी चलता है
पूर्णिमा का पूरा चांद न सही
कुछ तो हैं
वह भी कहाँ कम
उसी में खुश ।
No comments:
Post a Comment