उन किताबों में जो जिंदगी है उनको भी समझा है
फिर भी ऐसा लगता है
हम लोगों को पढने में नाकामयाब रहें
समझ नहीं पाते
कौन सही कौन गलत
कब कौन किस करवट बदलेगा
यह भी तो नहीं पता
पता नहीं किस किताब में लिखा होगा
लोगों को कैसे पढे
कौन अपना कौन पराया
ऐसा महसूस होता है
कहानी से लोग नहीं
लोग से कहानी बनती है ।
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